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[ राजस्थानी प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान इ५४६ ३५५५ (२७) लाषाकुलाणीरी वात
आदि- श्री गणेशाय नम ॥ अथ लाषाफुलाणीरी वात लिषते । प्रथम तो गीत सीहा सेतरा मोतरो लाषाजीनै मारीया तिरण समारो
सुध मन जात चालियो सीहो, सेन सुतन ले बहु साज । मूलराज नालेर मेलीयो, उपर करो कनोड्या प्राज ॥ १ हुतो चाल्यो जाति गोमती, सगी पण छै पागलो साथ ।
जाता करे वलता घर जास्या, वाउडता सगपरणरी वात ॥ २ अन्त- सिरदार काम आयो। राषायचरा काका भाइ सारा ही वैर ले पाछा पाटण पाया।
इति श्री लाषाफुलाणीरी वात सपूर्ण । सवत् १८२६ वर्षे येष्ट वदि १४ दिने पिपलीया ग्राम लिषत केसरचद लिपीकृत । तिण समारो कह्यो हो
लाषो तो मीहै मारीयो, थे भगा सो वार।
पडीयो सीह करकडे, की बेडीयो गिमार ॥१ वात लाखोजी पुरे लोहे पडिया छ त? मूलराज चावडो आयो सीहोजी कु च करे नैक नव जनै पधारीया। सोलकणीसु सुष भोगवता छ पुत्र हुवा छै । बडा आसयानजी तिके मारवाडमै आया। तिणारो विमतार राठोड छै सहो ।
___इति वारता सपूर्ण । १५६३ १८१५
विक्रम-चरित्र प्रादि- ॥४०॥ श्रीत्रिपुराई नम ॥
देवि सस्सति पाय पणमेवि शभु शकति बिमनी बरी। करिस कवित नव नवइ सिद्धि बुद्धिवर विघनहर ।। गुणनिवान गणपति प्रसादि ज्ञानी रषि आगइ हूया ।।
जह आगम परवेस तस पसाइ कवीअरण कहइ विक्रमसुत व्रणवस ॥१ दूहा ॥ आदि सति नेमी सरह, पासनाह वर्द्धमान ।
ए पचइ मगल करण, शास्त्रारभि प्रवान ॥ २ अन्त- पनरपासठइ सवत्सरिइ । जेठ मास सुदि पक्ष दिन करिइ ।
रवि रास ए शास्त्र प्रकास । कहि कवीयण निज गुरु उदास ॥ ४६
विपुल बुद्धि सुकवि तेह तणइ । वाचक उदयभानु इम भणइ ॥ ६२ इति श्रीविक्रमचरित्र प्रबध ॥ सवत् १५६७ वर्षे माघेशरमासे कृष्णपष्य नवभ्या तिथौ शनिवारेऽज्जेहश्रीपूर्णिमापक्षे पूजा श्री श्री ६ भुवनप्रभसूरि शक्ष्य वा० रत्नमेरु लिषित ॥ गोदावरी ग्राम श्री श्रीहस सानिध्ये लिषित ॥ कल्याणमस्तु ।।। ६४१४
विक्रमचरित्र ( हेमाणन्व रचित ) आदि- ०॥ श्रीसरस्वत्यै नम ॥ प्रणम्य देवदेवच वीतराग सुरचित ॥