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[ राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
दीन पातिसाह पदमणीरें लीयै आयो नै गोरोवादल लडीया । सबत १६२४ राणा उदसिंघजी चीतोड छूटो नै पीछोला- तलाव उपर उदैपुर वसायौ
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अन्त- सब्बत १६०० राव राम काल कीधो राव डुगरसी टीकेँ बैठो। पछे राव मालदे डुगरसीने तेडने होलीधारी रामति माहे झालीयो । पछे राव मालदे फलोधी आण घेरी । डुगरसीनै पिरण साथै ल्याया । कोट डुगरसीर रजपूत जगह देपावत सभायो । वडी बेढ कीवी मास २ ताई । पछै रावजी डुगरसीनै दोहरो करण लागा । तरै डुगरसीजी जगह छ देपावतन हायौ । तु कोट परोटे तरै जगह में कह्यौ कु थारै हाथ कूची देईस । तरे डुगरसीन पोल बारै ले गया । जगहथै देपावत डुगरसीरे हाथ कूची दीवी । डुगरसीजी राव मालदेनै दीधी । तरै राव मालदे गढ लीयो । डुगरसीनै परो छोड दीयो पछे डुगरसी कानी होइ गयो ।
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चद्रगुप्त सोलस्वप्न सज्झाय
य नम || हरषइ प्रभु गुरु प्ररणमी करी, स feess धरी । सोलह सुपण ती सिझाइ गता सवि सुष धाइ ॥
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भरतषेत्र पाडलपुरि
राजा चंद्रगुपति अभिराम ।
निसि भरि सेजि सुपन जे लहिया, सोलह सुरियो ग्रनुक्रमि कहिया || २ अन्त- सवत सोलहसइ बावी वसुदि पचमिय जगीस ।
राजलदेसर सघा एह सिकाय हीर रिषि कहइ ॥ २० द्र सोल स्वप्न सिज्झाय ॥ लिषत हेमराजेन ।
इति श्री चंद्रगु
विशेष – गुटका अत्यन्त जीर्ण एव त्रुटित होनेसे इस कृतिका अधिकाश खण्डित हो गया है ।
६०३.
प्रादि
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अन्त
दुहा ||
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जबरा मुषराकी वार्ता
आदि - अथ वार्ता १ जबरा मुषरारी लिष्यत्ते । पछिम दिसने पटण गाव छै । तठे प्रोढो भाटी राज करें। तिरपरै दोइ बेटा हुवा । एकरणरो तो नाम भीवो । दूजारो नाम देवो | गाव २॥ ऽय ३ रो धग्गी । घणा रजपूत षाप २ रा कनै रहे है । प्रसवार हजार १री साहिबी । तठे ठावा सगीर भीवान परगायो । देवो पिरण परण्यो । तठे वरस १६ माहे तो भीवो हुवो
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पूटी ताई षानाह, जि न पायो जषरो । मिले न मेले ताह, माटी दूजी मादुवा ॥ १ वेह दातार विवाह, जाचिक क्युं जीवै नही । बूटी ताई षानाह, जिगं न पायो जषरो ॥ २ पातरीया पहलोइ, जाय जूहारचो जषरो । नर बीजा नर लोइ, आष्या तलि आवै नही ॥ ३ श्रा इतरी वात जषरा मुषरारी कही । सूरवीर दातार, तिरपरै मन लही ॥ ३ इति वार्ता सपूर्ण ॥