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राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ सूचि-भाग-१ ]
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तेन व्यजाणे विजो कोय । तेह थानक एक अचरज होय । स्मीपे आण्यु देहरू । जै राजा ये हेरू करू ॥
माहि बेठो एक दिठो जन । तेहनु मरवा उपर मन ॥२ अन्त- विक्रममेन मोटो राजन । कहे पूतली सुणो भोजराजन ।
एवो को यथा स्ये सही । ते सीघासण बेसे जई ।। १०२ एह वात पुतलीये कही । पछे आकास मारगे उडी गई ॥ १०४
इति श्रीराजा विक्रमजितनी वारता काप्ठघोडानी सपूर्ण । ३४५ ११५२
कुतुबशत प्रादि- ई० ॥ ढढणी दान सबदकी, अढी देवल नाम ।
माहिबसा मुरत्तिया, बर बोलीये बडाम ।। १ एक दिवसि साहिबा ढढरणीकु पाणा षुलावती थी ढढणी प्रमाद कीया। साहिबा तुझक क्या उपगार करू । हमकु क्या उपगार करहुगे। हमारे बडाबूढाके उवसाफ करउ । तेहउ अवर क्या उपगार करहुगे । अन्त- जिन ही जीव अरग्गीया, ज्वलन भई जन जाइ ।
कह्या सुमाह कुतव्वदी, रहइ सु राषउ माहि । मुलतान फुरमान दीना, लेट करे गोष पर चीना ।। फकीर लुटणइ लागे, सादा नेवागे। वाजे वाजत वज्जीया, हुवे हुवदे काई ।
जिमी जीव कुतव्वदी, जिन नामना न जाइ । इति श्रीकुतबशत समाप्त ॥ श्री ॥ सवत् १६७० वर्षे वैशाषमासे कृष्णपक्षे शनिवारे श्रीमन्नागपुरीय तथागच्छ स्वच्छातुच्छसुगच्छसमुल्लासन सजलजलधराणा श्रीअमरकीतिसूरीश्वराणा शिष्य धर्मकीतिना लेरित ॥ श्री ॥ चेला साकरसी ॥श्री ।। श्रीनागपुरमध्ये।
२८९३ (१०३) गुजा-काचनसवाद
वर जिहु तामह बालिय, वरिषाधउ घरण धाउ । अनला माधि ज तोलियो, तिह भग्रउ भडव'उ ।। १ रन्नि वसती हू भली, रातउ सव्व मरीर । काउ मुह तव पाइयो, परमिउ पुरुष सरीर ॥ २ मुरिण गजा कचन भणड, हमि तुम्हि वटी क्सिीस । पडसिह तामण नीसरा तउ भाजुइ दुह रीम ।। ३ मुरिण कचरा गुजा भणइ, हमि तुम्हि एहि वटीस ।
पइसि समुदर नीसरा, तउ लभ्यइ कुल रीस ॥ ४ ५०४. ३५४६ (१७) चितोड जोधपुर आदिको ऐतिहासिक हकीकत
आदि-॥०॥ सवत ६०२ चित्रागदे मोरी चीतोड वसायो। सबत १३६१ अलाब
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