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राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान २७८ ७७२० (२२) कपडकुतूहल आद्य अश खण्डित है । उपलब्ध रचनाका प्रारभ इस प्रकार है
ढि पिलग पर सु दर ढोलियै वाय ।। १३ मसी जर सु मो मन भयो, प्रीउ ढोलिए बोलाय । माल मु हुगीवे लीजिये, सो माहरइ अावी दाय ॥ १४ तन मुपकी साडी चरणी कच वण्यो सुचग।
रतन जडीत नीरषी सोनी सुदर अग ।। १५ । अन्त- कचीयो पेम पछेवडो कीधो सैज तीमार।
तिण वेला मदिर गई प्रीउ मारणइ तिणि वार ॥ ३१ प्रीाग गगदास सूत, नगर उदैपुर वास । कपडकुतूहल कीधा वणी देहिं दुवास ।। ३२
इति कपडकतुहल सपूर्ण ॥ २६२. २०६२
करगडू चोपाई श्रादि- ॥०॥ नमो अरिहिताण रिसिह
जिणदह पयकमल, विमल वित्त पणमेसु । वद्धमाण निणा बलि काई एक कवित कहेसु ॥ १ रिसह वरस दिण तप कियउ, वद्धमाण छम्मास ।
वरमी छिम्मासाइसउ नामहु उतिण तास्स ।। २ अन्त- वाचक मशिषर इम कहइ, भरणइ ते सपद शिव लहइ ।। ७४
इति कूरगडू रिषि चउपई समप्रलिषड लेष्यक पाठके सुभ भवितु ।। ३०२ ११२३ (१२)
करसवाद आदिदूहा ।। पहिल प्रणमिमि मारदा, जमु करि वेणा नाद ॥
आदीस्वर आदिड करी, गाइसु कर मवाद ।। १॥ नाभिराय कुलमडणउ, मुरु देवी उरि हार । युगला धर्म निवारणउ, आदिइ आदि कुमार ॥ २ ॥ बीम लाष पूरब लही, कुयरपदिइ सुविशाल । त्रिस विलाष पूरव जिणड, कीधउ राज रसाल ।। ३ ।। दोइ कर मप जिनेश्वर करया, भाव सरिस अक्षर सभरिया। श्री श्रेयासकुमर आणद । प्रथम पारणू प्रथम जिणद ॥ ६४ ॥ हुई वृष्टि सो वन शृगार । दुदुभि देव करइ जयकार । मुनि लावण्यसमय कहइ जोय । जिहार सपति तहा सुष होय ।। ६५ सपइ लहीइ धननी कोडि । सपइ अग न लागइ षोडि । सपइ वयण न वाधइ रती । सप वषाणइ श्रीजिन मती ॥ ६६
इति श्रीऋषभदेवपारणाधिकारे करसवाद सपूर्ण ।