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सञ्चालकीय वक्तव्य
भारतीय साहित्यमे संस्कृत काव्य-ग्रन्थोका विशेष महत्त्व है । यो तो अनेक संस्कृत काव्य-ग्रन्थ विद्वत् समाजमे समादरणीय है कि तु वाल्मीकि, भवभूति, हष, माघ और कालिदास जैसे महाकवियोके काव्योकी सुरयाति देश-विदेश के समस्त काव्य-प्रेमियों तक प्रसृत हो चुकी है। यही नही, इनके काव्योके देश-विदेशकी कई भाषाओोमे रूपान्तर और व्यारयान भी प्रकाशित हो चुके है । ससारके प्रमुख देशोमे, सवत्र ही संस्कृत काव्यो और नाटकोका अध्ययन-अध्यापन, सम्पादन प्रकाशन और अभिनयादि प्रवृत्तिया लोगो की विशेष रुचि से गतिशालिनी है ।
राजस्थान प्रदेश भारतीय सभ्यता एव विद्याका विशेष क्षेत्र रहा है । यहाँके अनेक शासक स्वय रसिक साहित्य प्रणेता और साहित्यकारोके श्राश्रयदाता रहे है | राजस्थानी जनता भी विद्याभिरुचिमे किमीसे पोछे नही रही है । यही कारण है कि राजस्थानमे साहित्यिक सामग्री प्रचुर मात्रामे उपलब्ध होती है ।
प्रस्तुत महाकाव्य के प्रणेता स्वर्गीय महामहोपाध्याय पण्डित दुर्गाप्रसादजी द्विवदी पूव जयपुर - राज्य के श्राश्रित थे । प्रगाढ पाण्डित्य एव साहित्यिक प्रतिभा के लिए सरकार की ओरसे उह विशेष मान एव प्रोत्साहन प्राप्त था । द्विवदीजी कृत दशकण्ठवधम् (चम्पू) रामचरित्र - विषयक एक सरस काव्य-कृति है जिसका प्रकाशन विद्वत् समाजमे चिरप्रतीक्षित था । ' राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला" के २३वे ग्रथके रूपमे इस काव्यका प्रकाशन हो रहा है ।
स्वर्गीय महामहोपाध्यायजी रचित एक और ग्रन्थ दुर्गा-पुष्पाञ्जलि' भी इस ग्रन्थमाला प्रकाशित हो चुका है। इन दोनो ही ग्रन्थोके सम्पादक ग्रन्थकार के पौत्र श्री गङ्गाधर द्विवेदी, साहित्याचाय है । ग्रन्थकर्ताके जीवनवृत्त एव रचनाएँ आदि विषयो पर 'दुर्गापुष्पाञ्जलि' के सम्पादकीय लेखमे पर्याप्त प्रकाश डाला जा चुका है ।
आशा है कि संस्कृत काव्य-प्रमियोमे इस कृतिका समुचित आदर होगा ।
महा शिवरात्रि स० २०१६ वि०
भारतीय विद्या भवन, बम्बई
मुनि जिनविजय
सम्मा य सञ्चालक
राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान,
जोधपुर