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________________ ८५६ सुत्तागमे [णिसीहसुतं भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता विच्छिदित्ता णीहरित्ता विसोहेत्ता पधोइत्ता अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपेज वा विलिंपेज वा आलिंपतं वा विलिंपंतं वा साइजई ॥ १५१ ॥ जे भिक्खू अप्पणो कायंसि गंडं वा पलियं वा अरइयं वा अंसियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता विच्छिदित्ता णीहरित्ता विसोहेत्ता पधोइत्ता विलिंपित्ता तेल्लेण वा घएण वा णवणीएण वा अभंगेज वा मक्खेज वा अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा साइजइ ॥ १५२ ॥ जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि गंडं वा पलियं वा अरइयं वा अंसियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता विच्छिदित्ता णीहरित्ता विसोहेत्ता पधोइत्ता विलिंपित्ता मक्खेत्ता अण्णयरेणं धूवणजाएणं धूवेज वा पधूवेज वा धूवेतं वा पधूवेंतं वा साइजइ ॥ १५३ ॥ जे भिक्खू अप्पणो पालुकिमियं वा कुच्छिकिमियं वा अंगुलीए णिवेसिय २ णीहरइ णीहरंतं वा साइजइ ॥१५४ ॥ जे भिक्खू अप्पणो दीहाओ णहसिहाओ कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइजइ ॥ १५५॥ जे भिक्खू अप्पणो दीहाई जंघरोमाई कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइजइ ॥ १५६ ॥ जे भिक्खू अप्पणो दीहाई कक्खरोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइजइ ॥ १५७ ॥ जे भिक्खू अप्पणो दीहाई मंसुरोमाई कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइजइ ॥१५८॥ जे भिक्खू अप्पणो दीहाई णासारोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ ॥ १५९॥ जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं चक्खुरोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्पेंतं वा संठवेंतं वा साइजइ ॥ १६० ॥ जे भिक्खू अप्पणो दीहाई कण्णरोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइजइ ॥ १६१ ॥ जे भिक्खू अप्पणो दंते आघंसेज वा पघंसेज वा आघंसंतं वा पघंसंतं वा साइजइ ॥ १६२ ॥ जे भिक्खू अप्पणो दंते' सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोवेज वा उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा साइजइ ॥ १६३ ॥ जे भिक्खू अप्पणो दंते फूमेज वा. रएज वा फूमतं वा रएंतं वा साइजइ ॥ १६४ ॥ जे भिक्खू अप्पणो उढे आमज्जेज्ज वा फ्मज्जेज वा आमजंतं वा पमजतं वा साइजइ ॥ १६५॥ जे भिक्खू अप्पणो उठे संवाहेज वा पलिमद्देज वा संवाहेंतं वा पलिमहतं वा साइज्जइ ॥ १६६ ॥ जे भिक्खू अप्पणो उढे तेल्लेण वा घएण वा णवणीएण वा मक्खेज वा भिलिंगेज्ज वा मक्खेंतं वा भिलिंगेतं वा साइजइ ॥ १६७ ॥ जे भिक्खू अप्पणो उठे लोद्धेण १ गंडाइछेयणे कयाइ घाओ, असज्झाइयं, रोगवित्थाराइदोस त्ति पायच्छित्तठाणं । २ सोहाणिमित्तं । ३ विहूसाए।
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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