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उ० २ मासियमुग्वाइयं ]
सुत्तागमे
तड्डेइ ततं वा साइज्जइ ॥ ४१ ॥ जे भिक्खू पायस्स परं तिण्हं तुड्डियाणं तड्डेइ ततं वा साइज्जइ ॥ ४२ ॥ जे भिक्खू पायं अविहीए बंधइ बंधतं वा साइजइ ॥ ४३ ॥ जे भिक्खू पायं एगेण बंधेण बंधइ बंधतं वा साइज्जइ ॥ ४४ ॥ जे भिक्खू पायं परं तिह बंधाणं बंधइ बंधतं वा साइज्जइ ॥ ४५ ॥ जे भिक्खू अइरेगबंधणं पायं दिवढाओ मासाओ परेण धरेइ धरेंतं वा साइज्जइ ॥ ४६ ॥ जे भिक्खू वत्थस्स एवं पडियाणियं देइ देतं वा साइज्जइ ॥ ४७ ॥ जे भिक्खू वत्थस्स परं तिन्हं पडियाणियाणं देइ देतं वा साइज्जइ ॥ ४८ ॥ जे भिक्खू अविहीए वत्थं सिव्वाइ सिव्वंतं वा साइज्जइ ॥ ४९ ॥ जे भिक्खू वत्थस्सेगं फालियगठियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ५० ॥ जे भिक्खू वत्थस्स परं तिन्हं फालियगठियाणं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ५१ ॥ (वि० दे० साइज्जइ परं तिन्हं . ) जे भिक्खू वत्थं अविहीए गंठेइ गंठतं वा साइज्जइ ॥ ५२ ॥ जे भिक्खू अतजाएणं गहेइ गतं वा साइज्जइ ॥ ५३ ॥ जे भिक्खू अइरेगगहियं वत्थं परं दिवड्ढाओ मासाओ धरेइ धरेंतं वा साइज्जइ ॥ ५४ ॥ जे भिक्खू गिहधूमं अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिसाडावेइ परिसाडावेंतं वा साइज्जइ ॥ ५५ ॥ जे भिक्खू पूइकम्मं भुंजइ भुंजत वा साइज्जइ । तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्धाइयं ॥ ५६ ॥ णिसीहऽज्झणे पढमो उद्देसो समत्तो ॥ १ ॥
बिइओ उसो
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जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणयं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ५७ ॥ जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं गेण्हइ गेण्हतं वा साइज्जइ ॥ ५८ ॥ जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं धरेइ धरेंतं वा साइज्जइ ॥ ५९ ॥ जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं वियर वियरंतं वा साइज्जइ ॥ ६० ॥ जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परिभाएइ परिभाएंतं वा साइज्जइ ॥ ६१ ॥ जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परिभुंजइ परिभुंजतं वा साइज्जइ ॥ ६२ ॥ जे भिक्खू दारुदंडयं पायेंपुंछणं परं दिवढाओ मासाओ धरेइ धरेंतं वा साइज्जइ ॥ ६३ ॥ जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणयं विसुयावेइ विसुयावेंतं वा साइज्जइ ॥ ६४ ॥ जे भिक्खू अचित्तपइट्ठियं गंधं जिंघई जिघंतं वा
१ बिप्पे ' कप्पर णिग्गंथाणं दारुदंडयं पायपुंछणयं धारितए' त्ति एत्थ धारगस्स पायच्छित्तं ति विरोहाभासो, णेवं, तत्थ 'दारुदंडयं पायपुंछणयं' इच्चयस्स सदंडियं रयहरणिं ति अट्ठो, जा साहूणं कप्पइ णो साहुणीणं, 'पूंजणी' ति भासा, इत्थ दारुदंडण पायपुंछणेण वत्थावेढणरहियस्स रयहरणस्स गहणं ति । २ सकारणं कप्पइ दिवङ्ङ्कुमासदारुदंडयपायपुंछणयधारणं ति ।