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________________ उ० ४ आयरियउवज्झाय०] सुत्तागमे ८४१ उवज्झायत्तं अनिक्खिवित्ता अन्नं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए; कप्पइ आयरियउवज्झायस्स आयरियउवज्झायत्तं निक्खिवित्ता अन्नं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए; कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, ते य से वियरन्ति, एवं से कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; ते य से नो वियरन्ति, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए ॥ १२५ ॥ भिक्खू य गणायवकम्म इच्छेजा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा पवत्तिं वा थेरं वा गणिं वा गणहरं वा गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए; कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, ते य से वियरन्ति, एवं से कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; ते य से नो वियरन्ति, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए; जत्थुत्तरियं धम्मविणयं लभेज्जा, एवं से कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए; जत्युत्तरियं धम्मविणयं नो लभेजा, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ॥ १२६ ॥ गणावच्छेइए य गणायवक्कम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए; कम्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए; कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, ते य से वियरन्ति, एवं से कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; ते य से नो वियरन्ति, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए; जत्थुत्तरियं धम्मविणयं लभेजा, एवं से कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; जत्थुत्तरियं धम्मविणयं नो लभेजा, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ॥ १२७ ॥ आयरि(ओ)यउवज्झाए य गणायवकम्म इच्छेना अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए. नो कप्पइ आयरियउवज्झायस्स आयरियउवज्झायत्तं अनिक्खिवित्ता अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; कम्पइ आयरि
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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