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रसंगसंजुओ पढमो अंसो' देख कर अत्यन्त प्रसन्नता प्राप्त हुई । इसी तरह उपांग, छेद, मूल और आवश्यक भी शीघ्र ही बाहर पढ़ें तो बहुत अच्छा हो । अगर कुछ टाइप बड़ा होता तो कमनज़रवालों को भी पढ़नेमें सुविधा होती । साथमें अर्ज है कि शांतिनिकेतन, नालंदामें विदेशसे आए अनेक विद्यार्थी जैनधर्मविषयक सिद्धान्तको जाननेकी बड़ी उत्कण्ठा रखते हैं । 'सुत्तागमे' के साथ 'अत्थागमे' भी होना आवश्यक है। __ अब तक जो २ जैनागम जैनसमाजकी ओरसे बाहर पड़े हैं उनमें कुछ न कुछ त्रुटियां अवश्य रही हैं और किसी २ जगह अन्यके ऊपर छींटाकशी भी की गई है । इन बातों की आवश्यकता नहीं । मूल पर मूलका जो आशय है वही रहना ठीक है । 'सुत्तागमे' की यह प्रति बहुत ही शुद्ध है।
मुनि श्री हीरालालजी म० झरिया (३२) गत वर्ष श्रीसूत्रागमप्रकाशकसमिति गुड़गाँवसे प्रकाशित सूत्रोंमें द्वितीय आचारांग सूत्रादिकी पुस्तक एवं इस वर्ष भी श्रीभगवती सूत्रादि प्राप्त हुए। आपके स्तुल्य प्रयत्नके लिए कोटिशः धन्यवाद है। आगमोंका प्रकाशन इस प्रकार किया जावे तो अत्युत्तम रहेगा
(१) मूल एवं भावार्थ टिप्पणी युक्त परिशिष्टमें पारिभाषिक शब्दकोष एवं जैनधर्मके विशेष सिद्धान्त और मान्यताओं पर प्रकाश । (२) मूल एवं हिंदी टीका न अति विस्तृत और न अत्यन्त संक्षिप्त । (३) मूल संस्कृत छाया एवं संस्कृत टीका । (४) मूल संस्कृत छाया संस्कृत टीका एवं हिंदी अनुवाद । इन चार प्रकारके प्रकाशनोंके बाद या साथ २ अन्यान्य भाषाओंमें अत्युत्तम अनुवाद भी निकाले जाय ।
एक विशेष निवेदन यह भी है कि अनुवाद या टीकाएँ अपने सिद्धान्त परक श्रद्धामय होनी चाहिएँ। आजके प्रभाव वाले की छाया पड़नेसे वह आजकी वस्तु होगी, त्रिकालकी वस्तु नहीं।
इसके साथ ही अभिधान-राजेन्द्र कोपकी भांति मूल प्राकृत-संस्कृत-टीका और हिंदीटीका वाला 'पुप्फकोस' भी निकलवाना चाहिए। उसकी अत्यन्त आवश्यकता है । एक ही स्थान पर जिज्ञासुको आगमोंके एक विषय पर सारे पाठ मिल सकें और अमृतपान करनेके समान पाठक प्रसन्नताका अनुभव करने लगे।
कवि-श्रीकेवलमुनि-साहित्यरत्न उज्जैन