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परिसमापणा] सुत्तागमे
१०८३ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ, भुविं च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे, एवामेव दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ, भुविं च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे । से समासओ चउविहे पण्णत्ते, तंजहा-दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दव्वओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ पासइ। खित्तओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ । कालओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ । भावओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वे भावे जाणइ पासइ ॥ ५८ ॥ अक्खर सन्नी सम्म, साइयं खलु सपज्जवसियं च । गमियं अंगपविटुं, सत्तवि एए सपडिवक्खा ॥ ९३ ॥ आगमसत्थग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहिं अहिं दिढे । बिति सुयनाणलंभं, तं पुव्वविसारया धीरा ॥ ९४ ॥ मुस्सूसइ १ पडिपुच्छइ २ सुणेइ ३ गिण्हइ ४ य ईहए यावि ५ । तत्तो अपोहए ६ वा, धारेइ ७ करेइ वा सम्मं ८ ॥ ९५ ॥ मूयं हुंकारं वा, बाढक्कारं पडिपुच्छ वीमंसा । तत्तो पसंगपारायणं च, परिणि सत्तमए ॥ ९६ ॥ सुत्तत्थो खलु पढमो, बीओ निजुत्तिमीसिओ भणिओ। तइओ य निरवसेसो, एस विही होइ अणुओगे ॥ ९७ ॥ सेत्तं अंगपविट्ठ । सेत्तं मुयनाणं । सेत्तं परोक्खनाणं । सेत्तं नंदी ॥ ५९ ॥
॥ नंदीसुत्तं समत्तं ॥