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________________ ४९८ सुत्तागमे [भगवई कुवंति ?, जहा ओहिया तहा कुव्वणा ॥ जीवा णं भंते ! किं पञ्चक्खाणनिध्वत्तियाउया अपञ्चक्खाणणि० पञ्चक्खाणापञ्चक्खाणनि० १, गोयमा ! जीवा य वैमाणिया य पच्चक्खाणणिन्वत्तियाउया तिन्निवि अवसेसा अपञ्चक्वाणनिव्वत्तियाउया । पचक्खाणं १ जाणइ २ कुव्वंति ३ तिन्न(तेणे)व आउनिव्वत्ती ४ । सपदेमुद्देसंमि य एमेए दंडगा चउरो ॥ १ ॥ २३९ ॥ सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ॥ छट्टे सए चउत्थो उद्देसो समत्तो॥ किमियं भंते ! तमुक्काएत्ति पवुच्चइ कि पुढवी तमुकाएत्ति पवुनड आऊ तमुक्काएत्ति पवुच्चइ ? गोयमा । नो पुढवी तमुक्काएत्ति पचुच्चइ आऊ तमुक्काएत्ति पबुच्चइ । से केणटेणं ?, गोयमा! पुढविकाए णं अत्थेगइए नुमे देसं पकासेइ अत्थेगइए देसं नो पकासेइ, से तेणढेगं० । तमुकाए णं भंते ! कहिं समुहिए कहिं संनिहिए., गोयमा ! जंबुद्दीवस्स २ वहिया तिरियमसंखेजे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अरुणवरस्स दीवस्स वाहिरिल्लाओ वेइयन्ताओ अरुणोदयं समुई वायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपदेसियाए सेढीए इत्थ णं तमुक्काए समुहिए, सत्तरस एकवीसे जोयणसए उर्दू उप्पइत्ता तओ पच्छा तिरियं पवित्थरमाणे २ सोहम्मीसाणसणंकुमारमाहिदे चत्तारिवि कप्पे आवरित्ता णं उर्द्धपि य णं जाव बंभलोगे कप्पे रिट्ठविमाणपत्थडं संपत्ते एत्थ णं तमुक्काए णं संनिहिए ॥ तमुक्काए णं भंते ! किसंठिए पन्नत्ते ?, गोयमा! अहे मल्लगमूलसंठिए उप्पि कुकडगपंजरगसंठिए पग्णत्ते ॥ तमुकाए णं भंते ! केवइयं विक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते , गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-संखेजवित्थडे य असंखेजवित्थडे य, तत्थ णं जे से संखेजवित्थडे से णं संखेजाइं जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं प०, तत्थ णं जे से असंखेजवित्थडे से णं असंखेजाइं जोयणसहस्साई विक्खंभेणं असंखेजाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं प० । तमुक्काए णं भंते ! केमहालए प० ?, गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे २ सव्वदीवसमुदाणं सव्वमंतराए जाव परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ देवे णं महिड्डिए जाव महाणुभावे इणामेव २ त्तिकट्ठ केवलकप्पं जंबुद्दीवं २ तिहिं अच्छरानिवाएहि तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छिज्जा से णं देवे ताए उकिट्ठाए तुरियाए जाव देवगईए वीईवयमाणे २ जाव एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्नोसेणं छम्मासे वीईवएजा अत्थेगइए(य) तमुक्कायं वीईवएजा अत्थेगइए नो तमुकायं वीईवएजा, एमहालए णं गोयमा ! तमुक्काए पन्नत्ते । अत्थि णं भंते ! तमुक्काए गेहाइ वा गेहावणाइ वा ?, णो तिण? समढे, अत्थि णं भंते ! तमुक्काए गामाइ वा जाव संनिवेसाइ वा ?, णो तिण?
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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