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________________ १७२ सुत्तागमे [सूयगडं अणारिया दंसणओ परित्ता इइ संकमाणो न उवेइ तत्थ ॥ १८ ॥ ७६१ ॥ पण्णं जहा वणिए उदयट्ठी आयस्स हेउं पगरेइ सङ्गं । तयोवमे समणे नायपुत्ते इच्चेव मे होइ मई वियको ॥ १९ ॥ ७६२ ॥ नवं न कुज्जा विहुणे पुराणं चिच्चाऽमई ताइ य साह एवं । एयावया बम्भवइ त्ति वुत्ता तस्सोदयट्ठी समणे त्ति बेमि ॥ २० ॥ ॥ ७६३ ॥ समारभन्ते वणिया भूयगामं परिग्गहं चेव ममायमाणा । ते नाइसंजोगमविप्पहाय आयस्स हेडं पगरेन्ति सङ्गं ॥ २१ ॥ ७६४ ॥ वित्तेसिणो मेहुणसंपगाढा ते भोयणट्ठा वणिया वयन्ति । वयं तु कामेसु अज्झोववन्ना अणारिया पेमरसेसु गिद्धा ॥ २२ ॥ ७६५ ॥ आरम्भगं चेव परिग्गहं च अविउस्सिया निस्सिय आयदण्डा । तेसिं च से उदए जं वयासी चउरन्तणन्ताय दुहाय नेह ॥ २३ ॥ ७६६ ॥ नेगन्ति नचन्ति य ओदए सो वयन्ति ते दो वि गुणोदयम्मि। से उदए साइमणन्तपत्ते तमुदयं साहयइ ताइ नाई ॥ २४ ॥ ७६७ ॥ अहिंसयं सव्वपयाणुकम्पी धम्मे ठियं कम्मविवेगहेउं । तमायदण्डेहि समायरन्ता अबोहिए ते पडिरूवमेयं ॥ २५ ॥ ७६८ ॥ पिण्णागपिण्डीमवि विद्ध सूले केई पएजा पुरिसे इमे त्ति । अलाउयं वा वि कुमारए त्ति स लिप्पई पाणिवहेण अम्हं ॥२६॥ ७६९ ॥ अहवा वि विद्रूण मिलक्खु सूले पिण्णागबुद्धीइ नरं पएजा । कुमारगं वा.वि अलाचुयं ति न लिप्पई पाणिवहेण अम्हं ॥ २७ ॥ ७७० ॥ पुरिसं च विभ्रूण कुमारगं वा सूलंमि केई पएँ जायतेए । पिण्णागपिण्डं सइमारुहेत्ता बुद्धाण तं कप्पइ पारणाए ॥ २८ ॥ ७७१ ॥ सिणायगाणं तु दुवे सहस्से जे भोयए नियए भिक्खुयाणं । ते पुण्णखन्धं सुमहं जिणित्ता भवन्ति आरोप्प महन्त सत्ता ॥ २९ ॥ ७७२॥ अजोगत्वं इह संजयाणं पावं तु पाणा ण पसज्झ काउं । अबोहिए दोण्ह वि तं असाहु वयन्ति जे यावि पडिस्सुणन्ति ॥ ३० ॥ ७७३ ॥ उर्दू अहे यं तिरियं दिसासु विनाय लिङ्गं तसथावराणं । भूयाभिसंकाइ दुगुञ्छमाणे वए करेजा व कुओ विहऽत्यि ॥ ३१ ॥ ७७४ ॥ पुरिसे त्ति विन्नत्ति न एवमत्थि अणारिए से पुरिसे तहा हु । को संभवो पिण्णगपिण्डियाए वाया वि एसा बुइया असच्चा ॥ ३२॥ ७७५॥ वायाभियोगेण जमावहेजा नो तारिसं वायमुदाहरेजा। अट्ठाणमेयं वयणं गुणाण नो दिक्खिए वूयमुरालमेयं ॥ ३३ ॥ ७७६ ॥ लद्धे अढे अहो एव तुन्मे जीवागुभागे सुविचिन्तिए व । पुव्वं समुई अवरं च पुढे ओलोइए पाणितले ठिए वा ॥ ३४ ॥ ७७७ ॥ जीवाणुभागं सुविचिन्तयन्ता आहारिया अन्नविहीऍ सोहिं । न वियागरे छनपओपजीवी एसोऽणुधम्मो इह संजयाणं ॥ ३५ ॥ ७७८ ॥ सिणागगाणं तु दुवे सहस्से जे भोयए नियए भिक्खुयाणं । असंजए लोहियपाणि से ऊ
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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