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________________ सु० भ०३-उ० २] सुत्तागमे १०९ न जाणाइ जेएण परिविच्छए ॥ २ ॥ १६६ ॥ एवं सेहे वि अप्पुढे भिक्खायरियाअकोविए । सूरं मन्नइ अप्पाणं जाव लूह न सेवए ॥ ३ ॥ १६७ ॥ जया हेमन्तमासम्मि सीयं फुसइ सव्वगं । तत्थ मन्दा विसीयन्ति रजहीणा व खत्तिया ॥ ४ ॥ ॥ १६८ ॥ पुढे गिम्हाहितावेगं विमणे सुपिवासिए । तत्थ मन्दा विसीयन्ति मच्छा अप्पोदए जहा ॥ ५ ॥ १६९ ॥ सया दत्तेसणा दुक्खा जायणा दुप्पणोदिया। कम्मत्ता दुव्भगा चेव इचाहंसु पुढोजणा ॥ ६॥ १७० ॥ एए सद्दे अचायन्ता गामेसु नगरेसु वा । तत्थ मन्दा विसीयन्ति संगामम्मि व भीख्या ॥ ७ ॥ १७१ ॥ अप्पेगे खुहियं भिक्खं सुणी डंसइ लसए। तत्थ मन्दा विसीयन्ति तेउपुट्ठा व पाणिणो ॥ ८ ॥ १७२ ॥ अप्पेगे पडिभासन्ति पडिपन्थियमागया। पडियारगया एए जे एए एवजीविणो ॥ ९ ॥ १७३ ॥ अप्पेगे वइ जुञ्जन्ति नगिणा पिण्डोलगाहमा । मुण्डा कण्डविणट्ठना उज्जल्ला असमाहिया ॥ १० ॥ १७४ ॥ एवं विप्पडिवन्नेगे अप्पणा उ अजाणया। तमाओ ते तमं जन्ति मन्दा मोहेण पावुडा ॥११॥१७५॥ पुट्ठो य दंसमसगेहिं तणफासमचाइया । न मे दिढे परे लोए जइ परं मरणं सिया ॥ १२ ॥ १७६ ॥ संतत्ता केसलोएणं वम्भचेरपराइया । तत्थ मन्दा विसीयन्ति मच्छा विट्ठा व केयणे ॥ १३ ॥ १७७ ॥ आयदण्डसमायारे मिच्छासंठियभावणा । हरिसप्पोसमावन्ना केई लूसन्तिऽनारिया ॥ १४ ॥ १७८ ॥ अप्पेगे पलियन्तेसिं चारो चोरो त्ति सुव्वयं । बन्धन्ति भिक्खुयं वाला कसायवयणेहि य ॥ १५॥ १७९॥ तत्य दण्डेण संवीते मुट्ठिणा अदु फलेण वा । नाईणं सरई वाले इत्थी वा कुद्धगामिणी ॥ १६ ॥ १८० ॥ एए भो कसिणा फासा फस्सा दुरहियासया । हत्थी वा सरसंवित्ता कीवावस गया गिहं ॥ १७ ॥ १८१॥ति बेमि ॥ उवसग्गज्झयणे पढमुद्देसे ।। । अहिमे सुहुमा संगा भिक्खूणं जे दुरुत्तरा । जत्थ एगे विसीयन्ति न चयन्ति जवित्तए ॥ 1 ॥ १८२ ॥ अप्पेगे नायओ दिस्स रोयन्ति परिवारिया। पोसणे ताय पुट्ठो सि कस्स ताय जहासि णे ॥ २ ॥ १८३ ॥ पिया ते थेरओ ताय ससा ते खुड्डिया इमा ।' भायरो ते सगा ताय सोयरा किं जहासिणे ॥ ३ ॥ १८४ ॥ मायरं पियरं पोस एवं लोगो भविस्सइ । एवं खु लोइयं ताय जे पालेन्ति य मायरं ॥ ४ ॥ १८५ ॥ उत्तरा महुरुलावा पुत्ता ते ताय खुड्डया । भारिया ते नवा ताय मा सा अन्नं जगं गमे ॥ ५॥ १८६ ॥ एहि ताय घरं जामो मा य कम्मे सहा वयं । बिइयं पि ताय पासामो जामु ताव सयं गिह ॥६॥१८७॥ गन्तुं ताय पुणो गच्छे न तेणा समणो सिया । अकामगं परिकम्मं को ते वारिउमरिहइ ॥७॥१८८॥
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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