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________________ १ सु० म. ५-उ० ३] सुत्तागमे १०३ ॥ ४२ ॥ एवमन्नाणिया नाणं वयन्ता वि सयं सयं । निच्छयत्यं ण जाणन्ति मिलक्खु व्च अवोहिया ॥ १६ ॥ ४३ ॥ अन्नाणियाणं वीमंसा अन्नाणे न नियच्छइ । अप्पगो य परं नालं कुतो अन्नाणुसासि ॥ १७॥ ४४ ॥ वणे मूढे जहा जन्तू मूढे नेयाणुगामिए । दो वि एए अकोविया तिव्वं सोयं नियच्छई ॥ १८ ॥ ४५ ॥ अन्धो अन्धं पहं नेन्तो दूरमद्धाणुगच्छइ । आवजे उप्पहं जन्तू अदु वा पन्थाणुः गामिए ॥ १९ ॥ ४६ ॥ एवमेगे नियागट्ठी धम्ममाराहगा वयं । अदु चा अहम्ममावजे न ते सव्वजुयं वए ॥ २० ॥ ४७ ॥ एवमेगे वियकाहिं नो अन्नं पजुवासिया। अप्पणो य वियकाहिं अयमनं हि दुम्मई ॥ २१ ॥ ४८ ॥ एवं तकाइ साहेन्ता धम्माधम्मे अकोविया । दुक्खं ते नाइतुट्टेन्ति सउणी पञ्जरं जहा ॥२२॥ ॥ ४९ ॥ सयं सयं पसंसन्ता गरहन्ता परं वयं । जे उ तत्थ विउस्सन्ति संसारं ते विउस्सिया ॥ २३ ॥ ५० ॥ अहावरं पुरक्खायं किरियावाइदरिसणं । कम्मचिन्तापणट्टाणं संसारस्स पवद्वगं ॥ २४ ॥ ५१ ॥ जाणं काएणऽणाउट्टी अबुहो जं च हिंसइ। पुट्ठो संवेयइ परं अवियत्तं खु सावजं ॥ २५ ॥ ५२ ॥ सन्तिमे तउ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं । अभिकम्मा य पेसा य मणसा अणुजाणिया ॥ २६ ॥ ५३ ॥ एए उ तउ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं । एवं भावविसोहीए निव्वाणमभिगच्छई ॥ २७ ॥५४॥ पुत्तं पिया समारब्भ आहारेज असंजए। भुञ्जमाणो य मेहावी कम्मुणा नोवलिप्पई ॥ २८ ॥ ५५ ॥ मणसा जे पउस्सन्ति चित्तं तेसिं न विजइ । अणवजमतहं तेसिं न ते संवुडचारिणो ॥२९॥ ॥ ५६ ॥ इच्चैयाहि य दिट्टीहि सायागारवनिस्सिया । सरणं ति मन्नमाणा सेवन्ती पावगं जणा ॥ ३० ॥ ५७ ॥ जहा अस्साविणिं नावं जाइअन्धो दुरूहिया । इच्छई पारमागन्तुं अन्तरा य विसीयई ॥ ३१ ॥ ५८ ॥ एवं तु समणा एगे मिच्छदिट्ठी अणारिया । संसारपारकंखी ते संसारं अणुपरियट्टन्ति ॥ ३२ ॥ ५९ ॥ त्ति बेमि ॥ समयज्झयणे विइयुद्देसो॥ जं किंचि उ पूइकडं सड्डीमागन्तुमीहियं । सहस्सन्तरियं भुजे दुपक्खं चेव सेवई ॥ १॥ ६० ॥ तमेव अवियाणन्ता विसमंसि अकोविया। मच्छा वेसालिया चेव उदगस्सभियागमे ॥ २॥६१॥ उदगस्स पहावेणं सुकं सिग्धं तमेन्ति उ। ढङ्केहि य कङ्केहि य आमिसत्थेहि ते दुही ॥३॥ ६२॥ एवं तु समणा एगे वट्टमाणसुहेसिणो। मच्छा वेसालिया चेव घायमेस्सन्ति णन्तसो ॥ ४ ॥ ६३ ॥ इणमनं तु अन्नाणं इहमेगेसिमाहियं । देवउत्ते अयं लोए बम्भउत्ते इ आवरे ॥५॥ ॥ ६४ ॥ ईसरेण कडे लोए पहाणाइ तहावरे । जीवाजीवसमाउत्ते सुहृदुक्खसम
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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