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________________ भील कन्या से प्रणय इस पर राजा ने अपने कमरे के प्रदर से उत्तर दिया "नही सरदार | मै भी नही सोया । तुम यहा आओ ।" सरदार महाराज का शब्द सुनकर कमरे मे चला गया और उनकी चारपाई पर पैताने बैठ कर उनके चरण दबाने लगा । तिलकवती अपने कमरे मे चली गई । सरदार के बैठ जाने पर राजा बोले "सरदार । तुमने मुझ पर कितना उपकार किया है इस बात को सोचकर मै अत्यन्त सकोच मे पड जाता हू ।" 1 "नही महाराज | इसमे सकोच की क्या बात है । हमारा धर्म है कि हम आपकी सब प्रकार से सेवा करे । अब यदि कोई और सेवा हो तो वह भी बतलावे । इसीलिये मैं सोने से पूर्व आपके पास उपस्थित हुआ हूँ ।" “क्यो नही सरदार, सेवा तुमसे नही लेंगे तो और किससे लेगे । परन्तु तिलकवती भोजन बहुत अच्छा बनाती है । क्या तुमने अभी तक उसके लिय कोई वर ठीक किया ? " "नही महाराज I वर तो कई मिलते रहे, किन्तु अपनी एक प्रतिज्ञा के कारण मै उसका अभी तक भी विवाह नही कर सका । " " आपकी वह प्रतिज्ञा क्या है सरदार ?" 'महाराज | मैंने प्रतिज्ञा की है कि तिलकवती का विवाह किसी सामान्य व्यक्ति के साथ न कर किसी ऐसे राजा के साथ करूँगा, जो उसकी सन्तान को राज्य देने की प्रतिज्ञा करे ।" " तिलकवती के रूप को देखते हुए आपकी प्रतिज्ञा • अनुचित तो दिखलाई नही देती । क्या तुम उसे मगध की महारानी बनाने के प्रश्न पर विचार कर सकते हो ?" "यह तो महाराज मेरा तथा तिलकवती दोनो का सौभाग्य होता । किन्तु महाराज आपके अनेक तेजस्वी पुत्र है । इतने पुत्रो के रहते हुए आप तिलकवती के भावी पुत्र को मगध का युवराज बनाने की प्रतिज्ञा किस प्रकार कर सकते है ? " "किस प्रकार कर सकू गा, यह तो तुम मुझ पर छोड दो सरदार | तुम्हारे ६१
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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