SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गति पसंद नही है । उनका कहना है कि "वृन्दावनलाल वर्मा के इतिहास की सत्य रेखाओ पर चलने के कारण उनके उपन्यासों में इतिहास-रस की अपेक्षा इतिहास-सत्य अधिक व्यक्त हुआ है, जिससे उनकी रचना में भावना और तल्लीनता की अपेक्षा सतर्कता अधिक व्यक्त हुई है।” श्री चतुरसेन शास्त्री की सम्मति मे "इसी से वृन्दावन बाबू के उपन्यास हृदय की अपेक्षा मस्तिष्क पर अपना प्रभाव अधिक डालते है और पाठक उनके पात्रो के सुख-दु.ख को अपने सुख-दुख मे आरोपित नही कर पाता और केवल एक सहानुभति-पूर्ण दर्शकमात्र ही रह जाता है।" ऐतिहासिक उपन्यासों की मर्यादा-श्री चतुरसेन शास्त्री ने अपने ६००. पृष्ठ के विशालकाय उपन्यास "वैशाली की नगर-वधू" के पृष्ठ ८८६ पर लिखा है कि “इस ग्रन्थ मे पात्रो की काल-परिधि का कुछ भी विचार नही किया गया है और आवश्यकता पड़ने पर इतिहास के सत्य की रक्षा करने की कुछ भी परवाह नहीं की गई है।" इसका अर्थ यह हुआ कि श्री चतुरसेन शास्त्री अपने पाठको को इतिहासरस के नाम से इतिहास के धोखे मे रखना चाहते है। इसीलिये उन्होने अपने इस उपन्यास में अखण्ड ब्रह्मचारिणी महासती चन्दनबाला का विवाह राजकुमार विडूडभ से कराया है, वीतराग भगवान् महावीर स्वामी को राग-द्वेष में रत दिखलाया है तथा उत्तम गृहस्थ महाराजा श्रेणिक बिम्बसार के चरित्र को इतना गिरा हुमा दिखलाया है कि उन्होने प्रथम आर्या मातगी नामक कुमारी कन्या के साथ गुप्त व्यभिचार करके आम्रपाली को उत्पन्न किया और फिर अपनी पुत्री उसी आम्रपाली के साथ भी समागम किया। यदि ऐतिहासिक -घटनामो को इतना अधिक विकृत करके इसे इतिहास-रस नाम दिया जाता है तो ऐसे इतिहास-रस से हिन्दी के पाठको की रक्षा करना प्रत्येक इतिहासप्रेमी का परम कर्तव्य हो जाता है। ऐतिहासिक उपन्यास तो केवल उसी को कहा जा सकता है, जिसमे ऐतिहासिक तथ्यो की समस्त रूप से रक्षा की गई हो। उसमे कल्पना का उपयोग ऐतिहासिक पात्रो की उन्ही जीवन-घटनाओ के सम्बन्ध में किया जा सकता है। जिनके सम्बन्ध मे इतिहास मौन हो ।ऐतिहासिक पात्रो की ऐसी जीवन-घटनामो
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy