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घटती ही जाती है । उसका कारण अगले शीर्षक मे दिया जावेगा। ____ जैनी भगवान महावीर के उपदेश से दूर हटते जा रहे हैंवास्तव मे जैन धर्म के वर्तमान पतन का यही कारण है। भगवान् महावीर के मूल उपदेश मे जन्मना जाति का विरोध किया गया है। दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी तथा तेरापथी किसी के सिद्धान्त भी जन्मना जाति को सिद्ध नही कर सकते। किन्तु एक ओर जहां जैनियो के प्रभाव के कारण प्राचीन सनातन धर्म ने अपने हिसामय यज्ञ-यागो को छोड दिया वहां जैनियो पर भी उनका ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होने सनातनधर्मियो के जन्मना जाति के सिद्धान्त को दातो से जकड़ कर पकड लिया। इसी कारण नये-नये व्यक्तियों का जैन धर्म में प्रवेश रुक गया और जैन धर्म एक गतिहीन धर्म बन गया।
इसके अतिरिक्त जैन साधुओ की क्रियाएँ इतनी कठोर होती है कि उनका पालन करना अत्यन्त कठिन है। अत न तो नये-नये व्यक्ति प्रायः मुनिदीक्षा लेते है, और न गृहस्थ ही अपने नियमो का पालन ठीक-ठीक करते है।
फिर उनके देव, शास्त्र, गुरु की पूजा करने के सिद्धान्त के कारण वह अपने शास्त्रो को इतना अधिक पवित्र मानने लगे कि अन्य मतावलम्बियों से यह आशा करने लगे कि वह भी उनके शास्त्रो को शुद्ध वस्त्र पहिन कर तथा हाथ-पैर धोकर ही छुए। जैनियो की इस भावना के कारण अजैनो को जैन ग्रन्थो का देना बन्द हो गया, जिससे अजैन लोग यह समझने लगे कि जैनी लोग ग्रन्थो को छिपाते है।
हिंसा के अर्थ के विषय मे भी जैनी लोग भगवान् महावीर स्वामी की व्याख्या से हटते जा रहे है।
साम्प्रदायिक कलह-जैनियो के चारो सम्प्रदाय एक दूसरे से इतना द्वेष करते है कि वह किसी विषय में भी एकमत होकर कार्य नही कर सकते।
इस प्रकार जैनियो का आजकल बराबर पतन होता जाता है। किन्तु उभर गत शताब्दी से पाश्चात्य विद्वानो का ध्यान संस्कृत, प्राकृत तथा पाली के अध्ययन की ओर कुछ अधिक आकर्षित हुआ है। इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानो ने यूरोप तथा अमरीका जाकर भी जैनधर्म का प्रचार किया है, इससे जैनधर्म का प्रचार आजकल पाश्चात्य जगत् मे कुछ बढता जाता है। कितु बौद्ध तथा वैदिक धर्म के प्रचार की अपेक्षा वह प्रचार आज भी नगण्य है।
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