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शाक्य की पुत्री थी, जो उसने दासी मे उत्पन्न की थी। शाक्यो ने युनराज अवरथा में उसका अपमान भी किया था। प्रत विडूडभ ने कोशलराजा बनने पर शाक्यो पर आक्रमण करके उनके राज्य को पूर्णतया नष्ट कर दिया। बाद मे भगवान् बुद्ध ने विडम द्वारा विध्वस्त कपिलवस्तु को भी देखा था। - अजातशत्रु द्वारा यज्जिसंघ की समाप्ति-यह पीछे बतला दिया गया है कि साम्राज्यकागी अजातगनु वृज्जिगरण सघ को नष्ट करना चाहता था। इस युद्ध की तैयारी के लिये अजातशत्रु के अमात्य सुनीध तथा वर्षकार ने राजगृह की किलेबन्दी को और भी मजबूत करवाया। महापरिनिब्बत्ति सुत्त मे लिखा है कि बुद्ध जब अपने जीवन मे अन्तिम बार राजगृह आए तो अजातशत्रु ने अपने मन्त्री वर्षकार को उनके पास भेज कर अपने वज्जिसघ पर भावी अभियान के सम्बन्ध मे बुद्ध के विचार जानने का प्रयल किया । वुद्ध ने वृजियो के सबध मे सात प्रश्न पूछकर अपनी सम्मति दी। बुद्ध के कनन का साराश यह था कि जब तक बुजि लोग अपनी परिषदो मे नियम से एकत्रित होते है, जब तक वह एक साथ बैठते है, जब तक वह एक साथ उद्यम करते और एक साथ राष्ट्रीय कामो को करते है, जब तक वह नियम बनाए विना कोई प्राज्ञा जारी नही करते और बने हुए नियम का उल्लघन नहीं करते, जब तक वह अपने राष्ट्रीय नियमो के अनुसार मिल कर आचरण करते है, जब तक वह अपने वृद्धो का श्रादर करते और उनकी सुनने योग्य बाते सुनते है, जब तक वह अपनी कुल-स्तियो तथा कुल-कुमारियो पर किसी प्रकार की ज़ोर-जबर्दस्ती नहीं करते, जब तक वह अपने राष्ट्रीय मदिरो का आदर करते और अपने त्यागी विद्वानो की रक्षा करते है, तब तक उनका अभ्युदय होता जावेगा और उनकी हानि नही की जा सकती।
महात्मा गौतम बुद्ध के इस उत्तर से अजातशत्रु ने समझ लिया कि वह अपने सैनिक बल से वृजि-सव को नहीं जीत सकता। अतएव उसने अपने मत्री वर्षकार की सम्मति के अनुसार उनमें फूट डालने का निश्वय किया।
इसके बाद अजातशत्रु ने भरी सभा मे ब्राह्मण वर्षकार पर बज्जियो के साथ मिले होने का दोष लगाकर उसका भारी अपमान किया। वर्षकार राजगृह को छोडकर वैशाली आया और वहां एक सम्मानित अतिथि के रूप में रहने लगा । वर्षकार बड़ी सुन्दर रीति से वैशाली में न्याय कार्य करता था। वैशाली