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प्राप्त किया ।
गौतम बुद्ध का निर्वाण -- श्रजातशत्रु के राज्य के आठवे वर्ष और महावीर निर्वाण के दो वर्ष पश्चात् ईसा पूर्व ५२४ मे कुशीनारा मे महात्मा गौतम बुद्ध का निर्वाण हुआ ।
श्रावस्ती के सम्राट् प्रसेनजित् का पुत्र बिडूडभ जब श्रावस्ती का राजा बना तो उसने अपने मातृपक्ष के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिये शाक्यों पर श्राक्रमण करके उनका सर्वनाश कर डाला । भगवान् बुद्ध ने अपना पैतालीसवाँ तथा अन्तिम चातुर्मास्य श्रावस्ती में व्यतीत करके राजगृह जाते हुए मार्ग मे कपिलवस्तु के ध्वसावशेषो को देखा था । उन दिनों वैशाली मे आम्रपाली नामक एक वेश्या रहती थी । उसने एक बार भगवान् को सघ समेत भोजन के लिये निमंत्रित किया ।
"वयो श्रापाली | साज तुझको यह साहस, कि तू वैशाली के राजपुत्रो का उल्लघन करके अपना रथ उनसे भी आगे निकाल रही है ।"
"क्यो नही ? श्राज भगवान् तनागत ने मेरे यहा अपने सप सहित भोजन करना जो स्वीकार कर लिया है ।"
"ऐसी बात है ?"
"और क्या।"
"अच्छा आम्रपाली ! तू यह निमत्रण हमारे हाथो बीस सहसू स्वर्ण मुद्रा लेकर बेच दे ।"
"नही, कभी नही ।"
" पचास सहस्र स्वर्णमुद्रा ले ले ।”
"कभी नही ।"
" अच्छा एक लास स्वर्णमुद्रा ले ले ।"
"मै वैनाली का सारा राज्य लेकर भी इस निमत्रण को नहीं बेचूंगी । एक समय था जब आप लोगों को मै अपने द्वार पर नही आने देती थी तो पने को तथागत को अर्पण करना चाहा था, किंतु तथागत ने उस समय मेरे समस्त रूप-यौवन की उपेक्षा करते हुए केवल यही कहा था कि 'अभी नही ।" बाद में मै भयकर रूप से बीमार पडी और मैने आप लोगो को बुल
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