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चेलना ने भगवन् महावीर स्वामी के समवशरण में जाकर जिन दीक्षा ले ली। अजातशत्रु के शीभवन्त, विमल आदि सौतेले छोटे भाइयो ने अजातशत्रु के भय के कारण गौतम बुद्ध के पास जाकर बौद्ध दीक्षा ले ली। किन्तु अजातशत्रु ने अपने सगे चारो छोटे भाइयो को समझा-बुझा कर दीक्षा नही लेने दी। बिम्बसार की कोशलरानी क्षेमा इस घटना से बहुत पूर्व बौद्ध भिक्षुणी बन चुकी थी।
बिम्बसार के विषय मे कुछ ग्रन्थो मे लिखा है कि उसने ६७ वर्ष की प्राय तक ५२ वर्ष राज्य किया। किन्तु कुछ विद्वानो की सम्मति मे उन्होने कुल २८ वर्ष राज्य किया । वह ईसा पूर्व ५८४ मे गद्दी पर बैठा। उसके बाद ईसा पूर्व ५३२ में अजातशत्रु मगध की गद्दी पर बैठा। बिम्बसार अपने पुत्र के पास कितने समय तक बन्दी रहा, इसके कोई अक प्राप्य नहीं है।
अजातशत्रु का शासन-इसमे सन्देह नही कि राज्यप्राप्ति के पश्चात् अजातशत्रु को अपने कार्य पर अत्यधिक पश्चात्ताप हुमा । बौद्ध तथा जैन ग्रन्थो मे स्थान-स्थान पर उसके पश्चात्ताप का उल्लेख किया गया है। जैन लेखक हेमचन्द्राचार्य का तो यहा तक कहना है कि इस घटना के बाद वह राजगृह मे नही रह सका और उसने अपनी राजधानी राजगृह से उठा कर चम्पापुरी को बनाया।
अजातशत्रु ने कुल चौतीस वर्ष तक राज्य किया।
कोशल और मगध का युद्ध-अजातशत्रु के अपने पिता को इस प्रकार मारने की बडी भयकर अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया हुई। बिम्बसार कोशलराज प्रसेनजित् का बहनोई था । उसको आशा थी कि बिम्बसार के बाद उसका भानजा दर्शक मगध सम्राट् होगा । किन्तु अजातशत्रु ने अपने रास्ते से बिम्बसार के अतिरिक्त दर्शक को भी हटा दिया। इस पर क्रुद्ध होकर राजा प्रसेनजित् ने मगध को दिये हुए काशी के उस प्रदेश पर फिर अधिकार कर लिया, जो उसने अपनी बहिन कोशलदेवी क्षेमा का बिम्बसार के साथ विवाह होने पर उसके 'नहान-चुन्न मूल्य के रूप मे दहेज मे दिया था। इसी प्रश्न को लेकर मगध तथा कोगल में युद्ध आरभ हो गया । अजातशत्रु ने तीन युद्धों मे प्रसेनजित् को हराया, किन्तु चौथी बार वृद्ध प्रसेनजित् ने उसे पराजित करके कैद कर