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________________ केरल यात्रा यह भी अकेले अपने ही बल से रत्नचूल को नीचा दिखलाने की क्षमता रखते है। किन्तु उनके बाद सम्राट भी तत्काल ही सेना लेकर केरल चले जावें।" तब सम्राट् बोले "अच्छा तो ऐसा ही होवे । जम्बू कुमार ! तुम इन विद्याधर महोदय के माथ विमान पर प्रभी जा सकते हो। तुम एक क्षण के लिये घर जाकर अपने माता-पिता को सूचना दे पात्रो और अपने उपयोग के अस्त्र-शस्त्र भी अपने साथ ले लो और तुम वर्षकार जी, हमारी सेनामो को यात्रा के लिये तुरत तैयार होने की हमारी आज्ञा प्रसारित करा दो।" सम्राट् के यह कहने पर जम्बूकुमार वहा से उठकर तैयार खडे हुए अपने रथ पर बैठ कर अपने घर पाये। यहा उन्होने अपने माता-पिता को अपनी केरल-यात्रा का वृत्तान्त सुना कर अपने समस्त अस्त्र-शस्त्र अपने शरीर पर बाधे। फिर वह उसी रथ पर बैठकर राजसभा मे पाकर व्योमगति बद्याधर के विमान पर बैठकर केरल चले गये। उनके जाने के बाद राजा श्रेणिक बिम्बसार भी अपनी चतुरगिणी पेना को साथ लेकर केरल देश की यात्रा पर चले।
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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