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________________ श्रेणिक बिम्बसार प्रष्ट देखा जाता है। जो व्यक्ति इन आठो वस्तुओं का त्याग करता है वह अष्टमूल गुण का धारक कहलाता है। व्यक्ति को चाहिये कि वह पञ्च महाव्रत, पंच समिति तथा तीन गुप्तियो का पालन करने की अपनी क्षमता बढ़ा कर मुनिव्रत ले ले। किन्तु यदि वह अपट्टी सामर्थ्य इतनी न समझे तो उसे पंच प्रणवतो का धारण करके श्रावक ६ व्रत ले लेने चाहियें। किन्तु यह स्मरण रखना चाहिये कि मुनिव्रत ग्रहण करके तप किये विना मुक्ति कदापि नही हो सकती।" यह कहकर भगवान् चुप हो गये। भगवान् के इस उपदेश को सुनकर अनेक व्यक्तियो ने मुनि-दीक्षा ली, अनेक ने श्रावक के व्रत लिये तथा अनेक ने कोई व्रत न लेकर उनके सिद्धान्त पर केवल श्रद्धान ही किया। राजा श्रेणिक भी भगवान् के उपदेश को सुनकर अत्यत प्रसन्न हुए। वे उपदेश सुनकर अपनी रानियों सहित भगवान् की फिर वन्दना करके भगवान् से अनेक प्रश्नो का समाधान करने लगे। राजा श्रेणिक के साथ उनके पुत्रों ने भी भगवान् से अनेक प्रश्न पूछकर अपना शका-समाधान किया। उनके उपदेश को सुनकर राजा थेरिणक अपनी रानियो तथा पुत्रों सहित अपने घर आये। राजा श्रेणिक सवारी से उतर कर घर में बेठे ही थे कि उनके पुत्र अभयकुमार, वारिषेण तथा गजकुमार उनके पास आये। राजा ने उनकी उत्सुक मुद्रा देखकर उनसे पूछा--- "क्यो बेटा ! या कुछ कहना है ?" इस पर अभयकुमार बोला---"हां, पिताजी ! यदि आपकी आज्ञा हो तो कुछ निवेदन तो करना है।" सब राजा बोले-"तुम्हें जो कुछ कहना हो तुम प्रसन्नता से कहो बेटा?" तब अभयकुमार बोले-"पिताजी । भगवान् महावीर के वचनो से मेरी पाखें खुल गई है। पब मुझे संसार के भोग काले सर्प के समान दिखलाई देते
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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