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________________ ४५ बिम्बसार द्वारा भगवान के दर्शन मध्याह्न होने में अभी विलम्ब है । सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार अपनी राजसभा में सिहासन पर विराजमान है । राज सभा आधीन राजाओ, सामतो, राजकचारियो तथा अन्य व्यक्तियो से ठसाठस भरी हुई हैं । राजा श्रेणिक के ऊपर दुरते हुए चमरो से निकलने वाली ज्योति सभासदो के नेत्रों में बिजली के जैसी चमक यदा-कदा उत्पन्न कर रही है । सम्राट् के सिर पर चन्द्रमण्डल के समान श्वेत छत्र शोभायमान हो रहा है । बन्दीजन उनकी स्तुति कर रहे है कि वनमार्ले। ने प्रवेश करके उनके सन्मुख अनेक प्रकार के फलो तथा फूलो की डलिया रखकर निवेदन किया "राजराजेश्वर सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार की जय ।" “क्यों माली ! आज असमय क्यो आए ? तुम्हारी डलिया में आज सब ऋतुओ के फल-फूल क्यो दिखलाई देते है ।"" राजा के इन वचनो को सुनकर माली एक बार तो कुछ सोचकर आनन्द गद्गद् हो गया । किन्तु दूसरे ही क्षरण कुछ सम्भल कर बोला "देव । विपुलाचल पर्वत पर तीन लोक के नाथ भगवान् महावीर स्वामी का समवशरण आया हुआ है । उनके आगमन के प्रभाव से वहां सभी ऋतुओ के फल तथा फूल खिल गए है । जनता में स्वयमेव धार्मिक भावना जागृत हो रही है । देवता उन भगवान् की सेवा कर रहे है । वृक्षो से अपने श्राप ही पुष्प झड़ रहे है । सब दिशाएं निर्मल हो गई है । आकाश भी मेघसहत होकर स्वच्छ दिखलाई दे रहा है । पृथ्वी धूलरहित हो गई है । शीतल, मेन्द्र तथा सुगन्ध पवन चल रही है । भगवान् के मुख से सभी जीवों का कल्यारण करने वाली दिव्य ध्वनि निकल रही है । राजन् उनके विराजने का प्रभाव ऐसा पड़ा है कि जिन लोगो में आपस मे जन्म से ही वैरभाव था ऐसे विरोधी पशु
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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