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________________ श्रेणिक विम्बसार की रचना की, जिसमें मुनि, प्रायिका, श्रावक, श्राविका, देव, दानव तथा पशु-पक्षी तक अपने-अपने स्थान पर बैठकर उनका उपदेश सुनने लगे। भगवान् महावीर अहिंसा के साक्षात् अवतार थे। अतएव उनके समवशरण में आकर कोई भी व्यक्ति आपस मे द्वष-भाव नहीं करता था। सिंह और बकरी एक स्थान पर बैठकर उनका उपदेश समते थे । वह अर्द्धमागधी भाषा में उपदेश देते थे, किन्तु केवल ज्ञान होने पर कोई गणधर न होने के कारण वह उपदेश न दे सके । उन दिनो राजगृह में सुमति नामक ब्राह्मण के पुत्र गौतमगोत्री इन्द्रभूति नामक एक बड़े भारी विद्वान् रहते थे। वह पांच सौ शिष्यो को छहो अङ्गों सहित चारो वेदो की शिक्षा दिया करते थे। उनके पास एक ब्राह्मणवेषी विद्यार्थी आकर इस प्रकार बोला___ "महाराज ! मेरे पूज्य गुरु भगवान् महावीर स्वामी ने मुझे एक श्लोक बतलाया है, किन्तु उसका अर्थ बतलाने के पूर्व वह अपने शुक्ल ध्यान में प्रारूढ़ हो गए । मैं अनेक स्थानों मे इस श्लोक का अर्थ पूछने गया, किन्तु मुझे कोई भी न बतला सका । मैने सुना है कि आपके समान इस संसार में कोई विद्वान् नही है। क्या आप कृपा कर मुझे इस श्लोक का अर्थ बतलावेगे " इन्द्रभूति-अच्छा वत्स | कहो, वह कौन सा श्लोक है ? विद्यार्थी-देव, श्लोक यह है काल्यं द्रव्यषट्कं सकलगणितगणा. सत्पदार्था नवैव, विश्वं पञ्चास्तिकायतसमितिविदः सप्ततत्वानि धर्म । सिद्ध मार्गस्वरूपं विधिजनितफलजीवषट्कायलेश्या, एतान्यः श्रद्दधाति जिनवचनरतो मुक्तिगामी स भव्य.॥ विद्यार्थी के मुख से इस श्लोक को सुनकर इन्द्रभूति असमंजस में पड़ गये। यद्यपि वे वैदिक साहित्य के धुरंधर विद्वान् थे, किन्तु जैन सिद्धान्त का उन को लेशमात्र भी ज्ञान नहीं था । : द्रव्य, पञ्चास्तिकाय, नव पदार्थ, सात तत्त्व,
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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