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________________ ३६ सेनापति जम्बूकुमार सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार का सभा-भवन खचाखच भरा हुआ था कि सेनापति भद्रसेन ने उनसे निवेदन किया। भद्रसेन–मै श्रीमान् से कुछ निवेदन करने की अनुमति चाहता हूँ। सम्राट-अवश्य कहिये सेनापति जी ! आप क्या कहना चाहते है ? भद्रसेन-देव । मै अत्यन्त वृद्ध हो गया हू और पेट का रोग मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा है। इसलिये मै मगध राज्य के प्रधान सेनापति पद से अवकाश ग्रहण करना चाहता हूँ। सम्राट-आपकी शारीरिक स्थिति का हमको पता है सेनापति । हमने भी कई बार यह विचार किया कि आपसे अधिक कार्य लेकर हम आपके स्वास्थ्य के साथ कुछ न्याय नहीं कर रहे है, किन्तु आपके स्थान पर कोई उपयुक्त व्यक्ति न मिलने से इस विषय को हमने बराबर अभी तक टाला। भद्रसेन-सम्राट् की इस चिन्ता को मै पहले से ही समझता था। अतएव उसके संबंध मे कुछ आपसे निवेदन करना है देव ।। सम्राट-मै आपसे वही तो सुनना चाहता हूँ। भद्रसेन-देव ! आज आपके पास दो व्यक्ति ऐसे है जो मेरा स्थान ग्रहण करने योग्य है । यद्यपि यह दोनो ही नवयुवक है, किन्तु उनकी सैन्यसंचालन की योग्यता किसी प्रकार मुझ से कम नही है। इनमें एक व्यक्ति तो युवराज अभयकुमार है और दूसरे व्यक्ति है सेठ अर्हदास के पुत्र जम्बूकुमार। उन दोनो ही युवको ने मेरे निरीक्षण मे सैनिक शिक्षा प्राप्त करके सैन्यसंचालन में कुशलता प्राप्त की है। यदि महाराज सहमत हो तो इनमे से किसी को भी आप इस महान् मगध साम्राज्य का सेनापति-पद प्रदान कर सकते है। सम्राट-आपकी इस विषय में क्या सम्मति है वर्षकार जी । २२७
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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