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________________ वैशाली तथा मगध की संधि मध्याह्न का समय है । सूर्यदेव अपनी प्रखर किरणो से ममार को तपा रहे है । धूप के मारे गाय-भैस आदि सभी पशु छाया को खोज-खोज कर उमके नीचे जा बैठे है । पक्षी भी इस समय चुग्गे की खोज से हटकर वृक्षो पर विश्राम कर रहे है । किन्तु गगा जी के दोनो तट पर दो प्रबल मेनाएँ इस समय भी आमने-सामने खडी हुई है। उत्तर की ओर लिच्छवियों की प्रधानता में अष्टकुल की चतुरगिणी सेनाए युद्ध के लिये तैयार खडी है और गगा के दक्षिणी तट पर प्रतापी मगध-नरेश श्रेणिक बिम्बसार की विजयी सेनाए नावो को तैयार करके गगा को पार करने की तैयारी कर रही है। इधर लिच्छवी युवक मगध की साम्राज्य-कामना को जडमूल से उखाड देने के लिये कृतसकल्प है, तो उधर मगध-सेवाएं अपने सम्राट् के शत्रुओ के दमन करने के उत्साह में यागे बढ़ रही है। गगा के दोनो तट पर बडे-बडे मैनिक यानो तथा बजडो मे सैनिक लोग भर-भर कर एक-दूसरे पर आक्रमण करने ही वाले थे कि मगध की सेनामो ने अपने सम्राट् श्रेणिक बिबसार तथा महारानी चेलना को प्राते हुए देखकर जोर से जय-ध्वनि की। “सम्राट श्रेणिक बिम्बसार की जय।" "लिच्छवी कुमारी महारानी चेलना देवी की जय।" वैशाली की सेनाए मगध-सैनिको के इस जयघोप को सुनकर हक्कीबक्की सी रह गई। वह यह सुन चुके थे कि उनके गणपति महाराजा चेटक की सबसे छोटी कन्या कुमारी चेलना अतिशय रूपवती है । वह यह भी सुन चुके थे कि मगधराज उससे विवाह करना चाहते थे, किन्तु राजा चेटक ने उनके जैनी न होने के कारण उनको अपनी कन्या देने से इकार कर दिया था। फिर उनको यह भी समाचार मिला था कि कुमारी चेलना देवी मध्याह्न के समय अपने २२१
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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