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रत्नों का व्यापारी "मुझे आशा नही थी कुमार । कि आप अपने अभिनय का इस उत्तम रीति से सम्पादन कर सकेगे।"
"फिर आपने मुझे कुमार कहा । अभी से अपने पाठ को भूल गये, आप माणिकचन्द जी ।”
माणिकचन्द-मै क्षमा चाहता हूँ सेठ रत्नप्रकाश जी।
रत्नप्रकाश-हा। अब आये आप ठीक मार्ग पर। किन्तु हीरालाल जी का कार्य भी कम अच्छा नही रहा । वास्तव मे रत्न-शास्त्र का जितना सुन्दर ज्ञान उनको है, उतना हममे से किसी को नही है। ___हीरालाल-किन्तु रत्नप्रकाश जी । आपका प्रभाव राजा चेटक पर बहुत ही अच्छा पडा । वह आपको समस्त जबूद्वीप के बड़े से बडे धन-कुवेरो मे मानने लगे है।
सम्पतलाल-अजी भला, रत्नप्रकाश जी द्वारा भेट की हुई रत्नो की माला में क्या इतना भी प्रताप न होता।
रत्नप्रकाश-किन्तु सम्पतलाल जी । अब अपनी योजना की अबतक की सफलता का समाचार भी घर मेज देना चाहिये।
सम्पतलाल-यह बहुत जावश्यक है रत्नप्रकाश जी ! अच्छा प्रथम पाप अध्ययन-कक्ष मे जाकर अपना पत्र लिख ले।
रत्नप्रकाश-यह आपने ठीक कहा।
यह कहकर रत्नप्रकाश उन तीनो को वही छोडकर बगल के अध्ययन-कक्ष मे जाकर पत्र लिखने लगे। उन्होने निम्नलिखित पत्र लिखा"आदरणीय ।
आपकी कृपा से हम लोग रत्नो का व्यापार करने वाले जोहरी तो बन
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