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________________ महासती चन्दनबाला उत्तर देती कि मुझे जो कुछ मिलता है उसमे सन्तोष है। मेठ जी के इस व्यवहार से सेठानी को और भी अधिक ईष्यां होती थी, किन्तु वह उनकी जानकारी मे मुझे ऐसा दुख देने का साहस नही करती थी कि जिसका सेठ जी को पता हो जावे । वैसे बात-बात मे झिडकना, खराब भोजन देना आदि तो उसका नित्य का काम था। अन्त में एक दिन उसको अवसर मिल ही गया। सेठ जी तीन-चार दिन के लिए बाहर गए। उसनं सेठ जी के पीठ फेरते ही प्रथम तो मेरे सिर के बाल कटवाए, फिर मुझे वस्त्र के नाम पर यह अकेला कच्छा पहिना कर उसने मुझे भौरे जैसी इम ऐसी अधेरी कोठरी मे हाथ पैरो मे जजीर डाल कर कैद कर दिया कि मेरे कितना ही रोने-पीटने पर भी किसी को मेरी आवाज सुनाई न दे । साथ ही उसने घर की सब दासियो को कठोरता से आज्ञा दे दी कि मेरा भेद सेठ जी को न मिलने पावे । वह घर का ताला बन्द करके अपने पीहर चली गई । आज मुझको उस दशा मे तीसरा दिन है। भूख और प्यास के मारे मेरी आँखो के आगे अधेरा छा रहा है। लोहे की जजीर मेरी कोमत कलाइयो को ऐसी बुरी तरह चाट गई है कि हाथ हिलाए से भी नहीं हिलते । हा, भगवन् । इस प्रकार कब तक दुख मिलता रहेगा | इस दुख से तो मेरे प्राण ही निकल जाते तो अच्छा था । यहाँ तो रो-रो कर गला फाइँ गी तो भी किसी को पता नही चलने का। प्रभो । दया करो | मेरे कष्टो को दूर कर मुझे इतनी स्वतन्त्रता दे दो कि मै इस मायामय ससार के ममत्व का त्याग कर भगवान् महावीर स्वामी के चरणो का सेवन करती हुई अपने परलोक को बना सकूँ।" यह कहकर चन्दनबाला फूट-फूट कर रोने लगी। x इस समय भगवान् महावीर स्वामी को तप करते हुए ग्यारह वर्ष व्यतीत हो चुके थे । भगवान् का कौशाम्बी मे पधारने का समाचार सुनकर जनता बडे उत्साह से उनके दर्शन करने पहुंची। वह आशा करती थी कि भगवान् से कुछ उपदेश सुनने को मिलेगा, किन्तु भगवान् तो मौन थे । उन्होने किसी को
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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