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उन दिनो व्यापारिक तथा राजनीतिक संघर्षों का केन्द्र बना हुआ था।
यह पीछे लिखा जा चुका है कि उन दिनो यहा के गणपति राजा चेटक थे जो लिच्छवियो के भी गणपति थे। उनकी छ कन्याए तथा एक बहन थी। इन सातो कन्याओ के कारण उन्होने वज्जी गणतत्र के सबध भारत के कई राज्यो से बना रखे थे। उनकी बहिन त्रिशला का विवाह ज्ञातृक कुल के गणपति राजा सिद्धार्थ के साथ हुआ था, जिनके यहा जैनियो के चौबीसवे तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी ने जन्म लिया था। श्वेताम्बर जैन ग्रन्थो मे त्रिशलादेवी को राजा चेटक की बहिन बतलाया गया है, जो उसकी बडी आयु को देखते हुए ठीक मालूम देता है । दिगम्बर ग्रन्थो मे उसे राजा चेटक की सातो कन्यामो में सब से बड़ी बतलाया गया है। उसके नाम प्रिंयकारिणी तथा मनोहरा भी थे। राजा चेटक की दूसरी पुत्री मृगावती का विवाह वत्सनरेश शतानीक के साथ कौशाम्बी मे हुआ था । शतानीक को प्राचीन ग्रन्थो मे सार तथा महाराज नाथ भी लिखा गया है । उन दोनो के पुत्र उदयन के सम्बन्ध मे सस्कृत-साहित्य मे अनेक नाटक लिखे गए है। राजा चेटक की तृतीय पुत्री वसुप्रभा का विवाह दशार्ण (दशानन) देश के हेरकच्छपुर (कमैठपुर) के सूर्यवंशीय राजा दशरथ के साथ हुआ था। राजा चेटक की चौथी कन्या प्रभावती का विवाह कच्छदेश के रोरुकपुर के राजा महातुर के साथ हुआ था। पाचवी कन्या धारिणी अग नरेश दधिवाहन के साथ चम्पापुर मे ब्याही गई थी। उसके दो सतान थी-एक दृढवर्मन नामक पुत्र, दूसरी महासती चन्दनबाला, जो बालब्रह्मचारिणी रह कर विवाह किये बिना ही भगवान् महावीर स्वामी के पास दीक्षा लेने गई थी। राजा चेटक की छठी पुत्री ज्येष्ठा के विवाह का उल्लेख नहीं मिलता। उनकी सबसे छोटी पुत्री चेलना का विवाह मगध सम्राट श्रेणिक बिम्बसार के साथ हुआ था। इस विवाह के कारण मगध तथा वज्जीगण का होने वाला युद्ध तो टल ही गया, इन दोनो विपरीत आदर्श वाले राज्यो मे लगभग ७५ वर्ष तक घनिष्ठ मैत्री भी बनी रही। बाद मे बिम्बसार तथा चेलना के पुत्र अजातशत्रु ने इस संघ पर आक्रमण करके इसे समाप्त कर दिया। वज्जी सघ का शासन एक राज्यपरिषद् किया करती थी, जिसका निर्वाचन प्रत्येक सातवे वर्ष आठों कुलो मे से किया जाता था।