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चित्रकार भरत
"वैशाली के समस्त चित्रकार सुने, यह अयोध्यानिवासी कुशल चित्रकार भरत यहा आए हुए है। इनकी इच्छा वैशाली के समस्त चित्रकारो से प्रतिद्वन्द्विता करने की है। उनका दावा है कि शीघ्रतापूर्वक याथार्थ्य प्राप्त करने मे उनकी कोई बराबरी नही कर सकता । आप लोग किस चित्र के बनाने में प्रतियोगिता करेगे?
"हम तो देव का चित्र ही बनाना अधिक पसद करेगे।"
"अच्छा यही सही। आप लोग अपने-अपने चित्रपट पर एक-एक चित्र शीघ्रतापूर्वक वनावे।"
गणपति राजा चेटक के यह कहते ही सव चित्रकारो ने अपने-अपने चित्रपट पर तूलिका द्वारा चित्र बनाना आरम्भ किया । भरत ने भी अपने चित्रपट पर चित्र बनाना आरम्भ किया, किन्तु उसने आरम्भ करने के बाद कुछ ही क्षणो मे चित्र बनाकर गणपति के सामने उपस्थित कर दिया। उसके इस चातुर्य को देखकर सब के सब चित्रकार अवाक रह गए।
इसके बाद भरत बोला
"सब चित्रकार मेरे निवेदन को सुने । वह अपने र चित्र को पूरा कर ले। तब तक मै उनको दूसरा चमत्कार दिखलाऊँगा ।"
यह कहकर उसने उपस्थित सभी चित्रकारो की संख्या पच्चीस के बराबर चित्रपट अपने पास रखकर एक-एक चित्रपट को अपने हाथ में लेकर उस पर तूलिका रख-रख कर उसे एक २ कर सामने के आसन पर रग्वना आरम्भ किया । फिर उसने सभी चित्रकारो को बुला कर उनमे से प्रत्येक के हाथ मे एक२ चित्रपट दे दिया। चित्रकारो को यह देखकर अत्यन्त आश्चर्य हुआ कि प्रत्येक चित्रकार के हाथ मे उसका अपना चित्रपट था। यह दृश्य देखकर वह सब वि प्रकार भरी सभा मे भरत के चरणो मे गिर गए। तब उनमे से सबसे वृद्ध चित्रकार ललितकुमार ने राजा चेटक से कहा___"देव ! इन अयोध्यावासी महोदय से प्रतिद्वन्द्विता हम तो क्या इन्द्र की सभा का भी कोई चित्रकार नही कर सकता। इनको तो निश्चय से किसी देवताकी सिद्धि है, जिसकी सहायता से यह जिस व्यक्ति का मन मे ध्यान करके चित्रपट पर
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