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श्रेणिक बिम्बसार जो कोई भी इस तू बी के छिद्र से निकल जावेगा उसी को असली बलभद्र समझा जावेगा और उसी को भद्रा मिलेगी।" ___ कुमार के इन वचनो को सुनकर असली बलभद्र को बडा दुख हुआ । उसे विश्वास हो गया कि अब भद्रा मुझे कभी न मिलेगी, क्योकि मै तू बी के छेद से नही निकल सकता । किन्तु कुमार के इन वचनो से नकली बलभद्र को बडा हर्ष हुआ। उसने अपने शरीर को अत्यन्त पतला करके सीखचो से निकल कर ज्योही तू बी के अन्दर प्रवेश किया कि अभय कुमार ने फौरन तलवार का एक भरपूर हाथ तू बी मे मारकर उस नकली बलभद्र को जान से मार डाला । इसके पश्चात् उसने असली बलभद्र को कोठरी से निकाल कर उसे भद्रा के साथ अयोध्या जाने की अनुमति दे दी । कुमार की इस न्याय बुद्धि को देखकर सारी सभा मे बेहद हर्ष छा गया। तब महामात्य वर्षकार उठ कर बोले___“युवराज मै आपको इस अनुपम एव विलक्षण बुद्धि के लिये बधाई देता हूं"
इसके पश्चात् सभा विसर्जित कर दी गई और सम्राट् भोजन के लिये उठ गए।
इस प्रकार पक्षपातरहित न्याय करने से अभयकुमार की कीर्ति चारो ओर फैल गई। उनकी न्यायपरायणता देखकर सभी उनकी प्रशसा करते थे। कोशल के पश्चात् अन्य अनेक देशो से भी उनके पास अभियोग आते रहते थे, जिनका वह अपनी विलक्षण प्रतिभा से तुरन्त निर्णय कर दिया करते थे।