SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रेणिक बिम्बसार इस सारे दृश्य को खडी-खडी देखती रही। इस पर अभयकुमार उस बच्चे को छोडकर बोले "यह सिद्ध हो गया कि बच्चा वसुमित्रा का है, मै बच्चा वसुमित्रा को देता हू।" उन्होने वसुदत्ता की ओर देखकर कहा "निर्दयी राक्षसी | तू बच्चे की माता बनने का ढोग करती है और उसकी गर्दन पर तलवार देखकर मूर्ति के समान बनी खडी रही । तुझको मै असत्य बोलने के अपराध मे देशनिर्वासन का दण्ड देता हूँ । सेठ सुभद्रदत्त की समस्त सपत्ति के एकमात्र अधिकारी वसुमित्रा और उसका पुत्र होगे।" तब व्यावहारिक ने सम्राट् से फिर कहा"देव । एक अभियोग और है । वह भी मेरी समझ मे नहीं आया।" सम्राट-अच्छा | उसे भी हमारे सामने उपस्थित करो। व्यावहारिक ने एक आकृतिवाले दो व्यक्तियो के साथ एक स्त्री को उपस्थित किया । स्त्री अत्यधिक सुन्दर थी । उनको उपस्थित करके व्यावहारिक बोला व्यावहारिक अन्नदाता | यह अभियोग कोशल जनपद के अयोध्या नगर से समाट् प्रसेनजित् ने स्वय भेजा है। बहुत कुछ यत्न करने पर भी इस अभियोग का वह निर्णय न कर सके तो उन्होने इसे महाराज के पास भेज दिया। सम्राट-अच्छा बोलो क्या अभियोग है ? व्यवहारिक-इस मामले मे वादिनी यह स्त्री है। इसका नाम भद्रा है । यह अपना मामला स्वय उपस्थित करेगी। इस पर सम्राट् उस महिला से बोले-- सम्राट-क्यो देवी । तेरा क्या अभियोग है ? भद्रा-देव । इन दोनो मे से एक व्यक्ति मेरा पति है । इनमे एक व्यक्ति नकली है जो मेरे पति का रूप बनाये हुए है। कृपया मुझे नकली व्यक्ति से छुडाकर मुझे मेरा असली पति दिलवा दे। सम्राट्-यह तो बडा पेचीदा मामला है। व्यावहारिक-तभी तो महाराज प्रसेनजित् ने उसे आपके पास भेजा है सम्राट् ।
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy