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________________ अभयकुमार की न्याय-बुद्धि मध्याह्न होने मे अभी कुछ देर है । सम्राट् श्रेणिक की राजसभा पूर्णतया भरी हुई है। महाराज आज का राजकार्य समाप्त करके उठने ही वाले थे कि व्यावहारिक ने आकर निवेदन किया। "राज-राजश्वर सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार की जय" "क्या है व्यावहारिक ?" "देव । एक अभियोग नीचे के न्यायालयो से होता हुआ मेरे पास आया था, किन्तु वह इतना जटिल है कि मैं भी उसका न्याय करने में असमर्थ हैं। इसलिये उसे समाट् की सेवा मे उपस्थित करने की अनुमति चाहता है।" "अच्छा, हम अनुमति देते है। अभियोग उपस्थित किया जावे।" इसी समय व्यावहारिक ने राजसभा के एक कक्ष मे बिठलाई हुई दो भद्रमहिलाओं को राजसभा मे उपस्थित किया । दोनो महिलाओ की आयु लगभग तेईस-चौबीस वर्ष की थी। जिस समय वह दोनो महिलाए समाट् के सम्मुख उपस्थित हुई तो उनके अत्यन्त गौर वदन तथा अलौकिक सौदर्य से समाट् सहित समस्त सभा के नेत्र चौधिया गए। उनके समस्त भरीर पर रत्नजटित स्वर्णाभूषण थे । समाट् इन अतिशय रूप वाली महिलाओं को राजसभा में लाए जाने पर आश्चर्य कर ही रहे थे कि व्यावहारिक बोला "अभियोग इन दो महिलाओं का है। इनमें बाई ओर वाली महिला का नाम वमुमित्रा तथा दाहिनी ओर वाली का वसुदत्ता है। यह दोनो सेठ सुभद्रदन की पत्निया है।" सम्राट-सेठ सुभद्रदत्त का तो अभी-अभी देहान्त हुआ है न ? वह मगध के एक ग्राम के निवासी थे और विदेशो में अपार धन-सम्पत्ति कमाकर अभीअभी राजगृह मे आकर बसे थे ।
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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