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जाता था। उन दिनो गगा मे सहज्ञाति और यमुना मे कौशाम्बी तक बडी-बडी नावे चलती थी। सार्थवाह विदेह होकर, गान्धार होकर, मगध होकर सौवीर तक, भरुकच्छ से बर्मा तक, दक्षिण होकर बैबिलोन तक तथा चम्पा से चीन तक जाते-आते थे। कोशल जनपद के पश्चिम मे पाचाल, पूर्व मे सदानीरा (मण्डक) नदी, उत्तर में नेपाल की पर्वतमाला तथा दक्षिण मे स्यन्दिका नदी थी। आधुनिक समय का अवध प्रात प्राय प्राचीन काल का कोशल ही है।
प्रसेनजित् बडा भारी दिग्विजयी सम्राट् था । वास्तव मे उन दिनो कोशल का प्रसेनजित् तथा मगध का श्रेणिक बिम्बसार दोनो समस्त जम्बूद्वीप पर अधिकार करके चक्रवर्ती बनने की अभिलाषा रखते थे। प्रसेनजित् ने शाक्यो को पराजित करके बलपूर्वक उनकी एक राज्यकन्या से विवाह किया। किन्तु शाक्य प्रसेनजित् से घृणा करते थे, क्योकि उसके घर में कोई कुलीन रानी नही थी। उसकी राजमहिषी एक माली की लडकी थी। अतएव उन्होंने प्रसेनजित् के साथ धोखा करके उसको एक राजकुमारी न देकर उसके साथ नन्दिनी नामक एक ऐसी राजकुमारी का विवाह किया, जो वासभ खत्तिया नामक एक दासी मे सामत महालनामन से उत्पन्न हुई थी। प्रसेनजित् का उत्तराधिकारी पुत्र विडूडभ इसी शाक्य कुमारी नन्दिनी से उत्पन्न हुआ था। विडूडभ के प्रपौत्र सुमित्र को महापद्मनन्द ने ईसा पूर्व ३८० के आस-पास राज्यच्युत करके कोशल को मगध मे मिला लिया ।।
५ वृजि या वज्जी-यहा उन दिनो गणतत्र शासन प्रणाली थी, जिनकी राजधानी वैशाली थी। पहिले इसका नाम विशालपुरी था । मिथिला वैशाली से उत्तर पश्चिम ३५ मील पर भी। उसकी राजधानी तब भी जनकपुर ही थी। वास्तव मे विदेह राज्य ने ही टूट कर वज्जी सघ का रूप ग्रहण कर लिया था। इसमे निम्नलिखित अष्टकुल थे-विदेह, लिच्छवि, ज्ञातृक, वज्जी, उग्र, भोज, ऐक्ष्वाकु और कौरव । इनमे प्रथम चार प्रधान थे। विदेहो की राजधानी मिथिला तथा लिच्छवियों की राजधानी वैशाली थी, जो आजकल के मुजफ्फरपुर जिले मे थी। लिच्छवियों के भी नौ राजा थे । उनके प्रधान गणपति उन दिनो राजा चेटक थे, जो बाद में समस्त वज्जीसघ के भी गणपति हो गए थे । ज्ञातृको की राजधानी वैशाली के निकट कुण्डपुर या कोल्लाग थी। इसे कुण्डलपुर भी कहा