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श्रेणिक विम्वसार
आज्ञा देकर वापिस घर आ गये ।
एक अन्य अवसर पर उन्होने सन्यासी को भी देखा । उसको देखकर वह सोचने लगे कि हम गृहस्थो से तो यह सन्यासी ही बेहतर है ।
अब कुमार के नेन मे अन्तर्द्वन्द्व जोर से मचने लगा । खाते पीते, उठतेबैठते उन्हें सोचते ही बीतता था । वह यह सोचा करते थे कि जीवन का स्वभाव ही यह है कि वह वृद्ध होकर रोग से मर जावे । किन्तु उनका मन यह स्वीकार नही करता था कि वृद्धावस्था, रोग और मृत्यु सब के लिये अवश्यभावी है । उनका अन्तरात्मा कहता था कि यद्यपि उनका शिकार अधिकाश प्राणियो को बनना पडता है, किन्तु उनसे बचे रहना भी सभव है । अतएव वह उनसे बचने का उपाय हर समय सोचते रहते थे । वह सोचते थे कि ससार मे रहकर सासारिक कार्य करते हुए इन तीनो से बचना सभव नही है । इनसे बचने का उपाय केवल घर छोडकर त्यागमय जीवन व्यतीत करके ही किया जा सकता है । अतएव अब वह यह सोचने लगे कि किसी प्रकार गृहस्थी के जजाल से छूटकर घर को छोड दिया जावे। इस सम्बन्ध में सोच-विचार करते-करते उनको अनेक दिन लग गये । अन्त में उन्होने घर छोड़कर चले जाने का पूर्ण निश्चय कर लिया । घर छोड़ने का निश्चय करने पर भी उनके मन मे अन्तर्द्वन्द्व चलता ही रहा । सबसे प्रथम उनको उस छोटे से बालक राहुल का उनको देखते ही अपनी छोटी-छोटी बाहे उनकी ओर फैला उनको अपनी उस प्रेयसी का ध्यान भी आया, जिसको वह स्वयवर से जीत कर लाये जिसका आधार उनके अतिरिक्त और कोई नही था । वह सोचने लगे कि स्त्री तथा बच्चे को बिना अपराध क्यो छोडा जावे । किन्तु फिर उनके मन ने विचार आया कि यह सांसारिक बंधन ही तो सिद्धि के मार्ग की बाधाएँ है । इनको तोड़े बिना तो वृद्धावस्था, रोग तथा मृत्यु से बचने का उपाय खोजना असंभव है । उस मार्ग पर जाने के लिये तो उनके मोह को छोडना ही पडेगा । इस प्रकार उन्होने उसी समय घर छोडने का निश्चय किया । 'श्रेय' नं 'प्र'य' पर विजय प्राप्त की ।
ध्यान आया, जो देता था । फिर
उस समय अढ़ाई पहर रात्रि व्यतीत हो चुकी थी। राजकुमार ने निश्चय
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