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युवराज-पद इन्होने हमारी श्रद्धा को एकदम जीत लिया है। नगरनिवामी अभी से उनसे इतना प्रेम करते है कि वह जिधर निकलते है, दर्शनार्थियो के ठठ के ठळ लग जाते हैं। उनकी अलौकिक बुद्धि, जनप्रिय स्वभाव तथा न्यायप्रियता आदि लोकोत्तर गुणो के कारण उचित यही है कि उनको मगध मामाज्य का युवराज बना दिया जावे । आप लोग मेरे इस प्रस्ताव पर गम्भीरता से विचार करे।"
इस पर सेठ इन्द्रदत्त बोले
'श्रीमान् राजराजेश्वर सम्राट् महोदय ! महामात्य ! पौरजानपद ! तथा नागरिक मेरा निवेदन सुने। महामात्य ब्राह्मण वर्षकार ने राजकुमार अभय के सम्बन्ध मे जो कुछ कहा है वह हम सभी को अतिशय प्रिय लगने वाला है। मै नगर के समस्त व्यापारी समाज तथा पौरजानपद की ओर से घोषणा करता हूँ कि वह सब इस प्रस्ताव के पक्ष में है।"
इस पर समाए बोले
"आप लोगो ने जो कुमार के गुणो का वर्णन करके उनको युवराज पद देने का विचार प्रकट किया है इसे मै कुमार के अतिरिक्त अपना भी सम्मान मानता हूँ। मुझे अभिमान है कि मैं ऐसे योग्य पुत्र का पिता हूँ।" __ एक नागरिक केवल योग्य पुत्र के पिता नही, वरन् योग्य पुत्र के योग्य पिता भी।
सम्रट--आपके इस विचार के लिये मै आपका कृतज्ञ हूँ । अब में आपसे जानना चाहता हूँ कि क्या आप लोग इस प्रस्ताव से सहमत है।
इस पर सभी उपस्थित महानुभाव चुप रहे। तब समाट फिर बोले
"जो व्यक्ति इस प्रस्ताव के विरुद्ध हो वह अपना हाथ उठा दे।" इस पर किसी ने भी हाथ नही उठाया । सम्राट ने कहा
"महामात्य वर्षकार का राजकुमार अभय को युवराज बनाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास किया जाता है।"
इस पर उपस्थित व्यक्तियो ने एक साथ "युवराज अभयकुमार की जय" ।
बडे जोर से बोली। इस पर समाद ने उठकर अभयकुमार के सिर पर युवराज-पद का मुकुट रखा।
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