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________________ श्रेणिक बिम्बसार em rommmmmmmmmmmmmmmmmmmm मे एक विचार आया और उन्होने दूत को बुलाकर उससे कहा____ "तुम अभी नन्दिग्राम जाकर वहा के विप्रो से कहना कि महाराज ने यह आज्ञा दी है कि वह यहा मेरे सामने आकर एक ही मुर्गे को लडाकर दिखलावे । यदि वह ऐसा न कर सके तो गाव को खाली करके चले जावे।" महाराज की आज्ञा पाते ही दूत वहा से चलकर नन्दिग्राम आया। उसने वहा नन्दिनाथ के पास जाकर उससे कहा "महाराज ने यह आज्ञा दी है कि आप लोग गिरिव्रज जाकर महाराज के सामने एक अकेले मुर्गे को लडा कर दिखलावे और यदि ऐसा न कर सके तो गाव छोडकर चले जावे ।" दूत तो यह कहकर चला गया, किन्तु ब्राह्मणो के काटो तो बदन मे खुन नही । वह बेहद घबराए हुए कुमार के पास आए । उनको उन्होने समाट के सदेश का सारा समाचार सुना दिया। अभयकुमार ने उनको धीरज बधाते हुए कहा "आप लोग इस प्रकार क्यो घबराते है ? आप खुशी से गिरिव्रज जावे और राजा के सामने जाकर एक मुर्गे के सामने एक बड़ा सा दर्पण रख दे । जिस समय मुर्गा दर्पण मे अपनी परछाई देखेगा तो वह उसे दूसरा मुर्गा समझ कर उससे फौरन लडने लगेगा और आपका काम बन जावेगा।" कुमार का यह वचन सुनकर ब्राह्मण बडे प्रसन्न हुए। वह उसी क्षण गिरिव्रज चले गए और अपने साथ एक बडा दर्पण तथा मुर्गा लेते गए। राजमन्दिर मे पहुंचकर उन्होने विनयपूर्वक समाट् को नमस्कार किया। इसके पश्चात् उन्होने उनके सामने एक मुर्गा छोड दिया। फिर उस मुर्गे के सामने एक दर्पण रख दिया । जिस समय असली मुर्गे ने दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देखा तो वह उसे अपना प्रतिद्वन्द्वी दूसरा मुर्गा समझ कर क्रोध मे भर गया और शीशे पर चोचे मार-मार कर उसके साथ अत्यन्त भयकरता से युद्ध करने लगा। एक अकेले मुर्गे को युद्ध करते हुए देखकर महाराज चकित रह गए। उन्होने शीघ ही मुर्गे के सामने से दर्पण हटवा कर मुर्गे का युद्ध समाप्त करवा १२६
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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