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बार्हद्रथ वश कहा जाता था। जरासन्ध बृहद्रथ से नौवी पीढी पर था। उसने अग, बंग, कलिङ्ग तथा पुण्ड्र आदि को जीतकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया और अनेक राज्यों से कर लिया। उसकी राजधानी गिरिव्रज थी। उसने अनेक गणतत्रो पर भी आक्रमण किये । अन्धक-वृष्णियो का मथुरा का सघ राज्य भी उसके आक्रमण का शिकार हुआ, जिससे कृष्ण ने उनको अपना जनपद छोड कर द्वारिका ले जाकर बसाया । बाद में कृष्ण नें पाण्डवो की सहायता से भीम के हाथों जरासन्ध का वध कराया। उसके बाद ६४० वर्ष तक २२ बार्हद्रथ वशीय राजाओ ने राज्य किया। इस वंश का अतिम राजा रिपुञ्जय था।
रिपुञ्जय के अमात्य का नाम पुलिक था। उसने राजा रिपुञ्जय को मार कर अपने पुत्र बालक को मगध का सम्राट् बनाया। पुलिक मगध के आधीन अवन्ति का राजा भी था। उसके दो पुत्र थे—बालक और प्रद्योत । पुलिक ने अपने बड़े पुत्र बालक को मगध का राज्य देकर अपने छोटे पुत्र प्रद्योत को अवन्ति का राज्य दिया। बाद में प्रद्योत ने अपनी शक्ति को खूब बढा लिया, जिससे बाद मे उसे चण्डप्रद्योत भी कहा गया।
शिशुनाग वंश का संस्थापक भट्टिय शिशनाग-किन्तु बालक एक निर्बल शासक था। भट्टिय नामक एक बलवान् सेनापति ने उसे मार कर मगध के राज्यसिंहासन पर अधिकार कर लिया। भट्टिय को कही-कही श्रेणिक तथा जैन ग्रन्थो में उपश्रेरिगक कहा गया है। सभवत उसका एक नाम शिशुनाग भी था। कुछ विद्वानो का मत है कि भट्टिय पुलिक की परम्परा का अनुसरण करके मगध के राजसिंहासन पर स्वय नही बैठा, वरन् उसने अपनें पन्द्रहवर्षीय पुत्र बिम्बसार को राजा बनाया। किन्तु जैन ग्रन्थो मे लिखा है कि बिम्बसार को अपने पिता उपश्रेणिक का कोपभाजन बन कर निवासित जीवन व्यतीत करना पड़ा। क्योकि राजा भट्टिय ने एक भीलकन्या से विवाह करके उसके पुत्र को राजगद्दी देने की प्रतिज्ञा की थी, अत. राजा भट्टिय ने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने के लिये बिम्बसार को देशनिर्वासित करके अपने पुत्र चिलाती को मगध की गद्दी पर बिठलाया । किन्तु वह एक अच्छा शासक तथा सेनापति नहीं था। अतएव मगध के नागरिक तथा सैनिक नेताओं ने बिम्बसार को निर्वासित जीवन से