SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ --१७ गिरिब्रज की पुकार इस प्रकार चिलाती के अत्याचार ज्यो-ज्यों उग्र से उग्रतर होते जाते थे त्यो त्यो गिरिव्रज निवासियो का असन्तोष भी अधिकाधिक बढता जाता था। सेना मे प्रत्येक व्यक्ति चिलाती से घृणा करने लगा। सैनिक तथा सेनाधिकारी सब यह मना रहे थे कि कब श्रेणिक बिम्बसार आवे और वह उसे अपना समाट् स्वीकार करे । इस निश्चय के लिये वह सामूहिक रूप से गुणभद्र तथा वर्षकार के सम्मुख शपथबद्ध हो चुके थे। राजमहल मे भी चिलाती के लिये कोमल भावनाओ का अभाव था। वहां कोई रानी ऐसी नही थी, जिसे उसके हाथो अपमानित न होना पडा हो । अतएव वहा भी सब की इच्छा यही थी कि यह आफत उनके सिर से किसी प्रकार टले । किन्तु राजमहल मे श्रेणिक बिम्बसार के पक्ष मे कुछ भी प्रचार नही किया गया, क्योकि वहा चिलाती की माता से यह आशा नही की जा सकती थी कि वह अपने पुत्र को गद्दी से उतारने में किसी प्रकार का सहयोग देगी। नगर-निवासियो मे इस आन्दोलन का निश्चय ही सेना से भी अधिक प्रचार हुआ। उन पर तो चिलाती के अत्याचार सीमा को लाघ चुके थे। नगर क बडे-बडे श्रेष्ठी चिलाती को सिहासन-च्युत करने के लिये बडी-बडी धन-राशि भी खर्चने को तैयार थे। ___इस प्रकार सब ओर से आन्दोलन को सफलता प्राप्त होने पर आन्दोलकों की एक बैठक गिरिव्रज विश्व-विद्यालय में की गई। उसमे निश्चित किया गया कि पाच व्यक्तियो का एक प्रतिनिधि मण्डल वेणपद्म नगर जाकर राजकुमार श्रेणिक बिम्बसार को गिरिवज आने का निमन्त्रण दे और उनके आने पर उनको साम्राज्य का शासन सौप दिया जाये। महामात्य कल्पक तथा सेनापति
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy