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॥ अथ नवमो मोक्षद्वार प्रारंभ ॥ ९ ॥
३१ सा-भेदज्ञान आरासों दुफारा करे ज्ञानी जीव, आतम करम धारा भिन्न भिन्न चरचे || अनुभौ अभ्यास लहे परम धरम गहे, करम भरमको खजानो खोलि खरचे ॥ योंही मोक्ष मख धावे केवल निकट आवे, पूरण समाधि लहे परमको परचे । भयो निरदोर याहि करनो न कछु और, ऐसो विश्वनाथ ताहि बनारसि अरचे ॥ १ ॥
३१ सा-धरम धरम सावधान व्है परम पैनि, ऐसी बुद्धि छैनी घटमांहि डार दीनी है || पैठी नो करम भेदि दरव करम छेदि, स्वभाव विभावताकी संधि शोधि लीनी है। तहां मध्यपाती होय लखी तिन धारा दोय, एक मुधामई एक सुधारस भीनी है ॥ मुधासों विरचि सुधासिंधुमें गमन होय, येती सब क्रिया एक समै बीचि कीनी है ॥ २ ॥
जैसी छैनी लोहकी, करे एकसों दोय । जड़ चेतनकी भिन्नता, त्यों सुबुद्धिसों होय ॥ ३ ॥
३१ सा--- धरत धरम फल हरत करम मल, मन वच तन वल करत समरपे ॥ भखत असन सित चखत रसन रित, लखत अमित वित कर चित. ..दरपे ॥ कहत मरम धुर दहत भरम पुर, गहत परम गुर उर उपसरपे ॥ रहत जगत हित लहत भगति रित, चहत अगत गति यह मति परपे ॥४॥
राणाकोसो बाणालीने आपासाधे थानाचीने, दानाअंगीं नानारंगी खाना जंगी जोधा है | मायावेली जेतीतेती रेतेंमें धारेती सेती, फंदाहीको कंदा खोदे खेतीकोसों लोधा है ॥ बाधासेती हांतालोरे राधासेती तांता जोरे