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दोहा. चेतन लक्षण आतमा, जड़ लक्षण तन जाल । तनकी ममता त्यागिके, लीजे चेतन चाल ॥ ३५॥
आत्माकी शुद्ध चाल कहे है । सवैया २३ सा. जो जगकी करणी सब ठानत, जो जग जानत जोवत जोई ॥ देइ प्रमाण मैं देहसं दूसरो, देह अचेतन चेतन सोई ॥ देह धरे प्रभु देहसं भिन्न, रहे परछन्न लखे नहिं कोई ॥ लक्षण वेदि विचक्षण वूझत, अक्षनसों परतक्ष न होई ॥ ३६ ॥
देहकी चाल कहे है । सवैया २३ सा. देह अचेतन प्रेत दरी रज, रेत भरी मल खेतकी क्यारी ॥ व्याधिकी पोट आराधिकी ओट, उपाधिकी जोट समाधिसों न्यारी ॥ रे जिया देह करे सुख हानि, इते परती तोहि लागत प्यारी ॥ देह तो तोहि तजेगी निदान पैं, तहि तजे क्यों न देहकी यारी ॥३७॥
दोहा. सुन प्राणी सद्गुरु कहे, देह खेहकी खानि । धरे सहज दुख पोषियो, करे मोक्षकी हानि ॥ ३८॥
देहका वर्णन करे है ॥ सवैया ३१ सा. रेतकीसी गढी कीधो मढि है मणास कीक्षी, अंदर अंधेरि जैसी कंदरा है सैलकी ॥ ऊपरकी चमक दमक पट भूषणकी, धोके लगे भली जैसी कलि है कनैलकी ॥ औगुणकी उंडि महा भोंडि मोहकी कनोंडि, मायाकी 'मेसूरति है मूरति है मैलकी ॥ ऐसी देह याहीके सनेह याके संगती सों; व्है रही हमारी मति कोलू कैसे वैलकी ॥ ३९ ॥