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(६१) अधम मनुष्यका स्वभाव कहे है । सवैया ३१ सा. जैसे रंक पुरुषके भावे कानी कौड़ी धन, उलुवाके भावे जैसे संझा ही विहान है । कूकरके भावे ज्यों पिडोर जिरवानी मठ्ठा, सूकरके भावे ज्यों पुरीष पकवान है ॥ वायसके भावे जैसे नींवकी निंबोरी दाख, वालकके भावे दंत कथा ज्यों पुरान है ।। हिंसक के भावे जैसे हिंसामें धरम तैसे, मूरखके भावे शुभ वंध निरवान है ॥ २० ॥ ____ अधमाधम मनुष्यका स्वभाव कहे है ॥ सबैया ३१ सा.
कुंजरको देखि जैसे रोष करि भुंके स्वान, रोष करे निर्धन विलोकि धनवंतकों ॥ रैनके जगैय्याकों विलोकि चोर रोष करे, मिथ्यामति रोष करे सुनत सिद्धांतकों ॥ हंसकों विलोकि जैसे काग मन रोप करे, अभिमानि रोप करे देखत महंतको ॥ सुकविकों देखि ज्यों कुकवि मन रोष करे, त्योंही दुरजन रोप करे देखि २ संतकों ॥ २१ ॥ ___ सरलकों सठ कहे वकतको धीठ कहे, विनै करे. तासों करे धनको आधीन है || क्षमीकों निवल कहें दमीकों अदात्त कहे, मधुर वचन बोले तासों कहे दीन है ॥ धरमीकों दंभि निसप्रहीकों गुमानी कहे, तृषणा घटावे तासों कहे भाग्यहीन है ॥ जहां साधुगुण देखे तिनकों लगावे दोष; ऐसो कछु दुर्जनको हिरदो मलीन है ॥ २२ ॥ . मिथ्यादृष्टीके अहंवुद्धीका वर्णन करे है ॥ चौपई ॥ दोहा. मैं कहता मैं कीन्ही कैसी । अब यों करो कहे.जो ऐसी ॥ ए विपरीतं भाव है जामें । सो वरते मिथ्यात्व दशामें ॥ २३ ॥
अहंबुद्धि मिथ्यादशा, धुरे सो मिथ्यावंत ॥ विकल भयो संसारमें; करें विलाप अनंत ॥ २४ ॥...