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महानंदमें समाधि रीछी करिके ॥ सत्ता रंगभूमिमें मुकत भयो तिहूं काल, . नाचे शुद्धदृष्टि नट ज्ञान स्वांग धरिके ॥ ६॥ 'कही निर्जराकी कथा, शिवपथ साधन हार। अब कछु बंध प्रबंधको, कहूं अल्प व्यहार ॥ ६१ ॥ सम्यक्ती [भेदज्ञानी ] • नमस्कार करे है । सवैया ३१ सा. मोह मद पाइ जिन्हे संसारी विकल कीने, याहीते अजानवान विरद वहत है । ऐसो बंधवीर विकराल महा जाल सम, ज्ञान मंद करे चंद राहु ज्यों गहत है ॥ ताको वल भंजिवकों घटमें प्रगट भयो, उद्धत उदार जाको उदिम महत है ।। सो है समकित सूर आनंद अंकूर ताहि, निरखि बनारसी नमोनमो कहत है ॥ १॥
___ ज्ञानचेतनाका अर कर्मचेतनाका वर्णन ॥ सवैया ३१ सा. । जहां परमातम कलाको परकाश तहां, धरम धरामें सत्य सूरजकी धूप है। जहां शुभ अशुभ करमको गढास तहां, मोहके विलासमें महा अंधेर कूप है ।। फेली. फिरे घटासी छटासी घन घटा बीच, चेतनकी चेतना दुहूंधा गुपचुप है ॥ बुद्धीसों न गही जाय वैनसों न कही जाय, पानीकी तरंग जैसे पानीमें गुडूप है ॥ २ ॥ कर्मबंधका कारण रागादिक अशुद्ध उपयोग है ॥ सवैया ३१ सा. .
कर्मजाल वर्गणासों जगमें न बंधै जीव, वंधे न कदापि मन वच काय जोगों ॥ चेतन अचेतनकी हिंसासों न वधे जीव, वंधे न अलख पंत्र विषै .. विष रोगसों ॥ कर्मसों. अबंध सिद्ध जोगसों अबंध जिन, हिंसासों अबंध , साधु ज्ञाता विषै भोगसों ॥ इत्यादिक वस्तुके मिलापसों न वधे जीव, बंधे, एक रागादि अशुद्ध उपयोगसों ॥ ३॥