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भलकमें ॥ तेई प्रभुपारस महारसके दाता अव, दीजे मोहिसाता हग..... लीलाकी ललकमें ॥ ३ ॥
अब श्रीसिद्धकी स्तुति ॥ छंदअडिल्ल. अविनासी अविकार परमरस धाम है ॥ समाधान सरवंग सहन अमिराम है । शुद्धवुद्ध अविरुद्ध अनादि अनंत है ॥ जगत सिरोमणि सिद्ध सदा जयवंत है ॥ ४ ॥
अब श्रीसाधुकी स्तुति ॥ सवैया ३१ सा. : म्यानको उजागर सहन सुखसागर, सुगुन रतनागर विरागरस भन्यो है॥ सरनकी रीत हरै मरनको भै न करै, करनसों पीठदे चरण अनुसयो है । धरमको मंडन भरमको विहंडनजु, परम नरम व्हेकै करमसो लयो है ॥ ऐसोमुनिराज भुवलोकमें विराजमान, निरखि वनारसी नमस्कार कन्यो है ॥ ५ ॥ .. ... . ' अब सम्यग्दृष्टीकी स्तुति ॥ सवैया २३ सा. . भेदविज्ञान जग्यो जिन्हकेघट, सीतल चित्त भयो जिमचंदन । केलिकरे शिव मारगमें, जगमाहि जिनेश्वरके. लघुनंदन ॥ सत्यस्वरूप सदा जिन्हके, प्रगट्यो अवदात मिथ्यात निकंदन. .॥ . शांतदशा तिनकी पहिचानि, करे . करजोरि वनारसी वंदन ॥६॥ . ...स्वारथके सांचे परमारथके सांचे चित्त, सांचे सांचे वैन कहें सांचे जैन- . मती है। काहूके विरुद्धी नाही परजाय बुद्धी नाही, आतमगवेषी न गृहस्थ .. है न यती है ॥ रिद्धिसिद्धि वृद्धी दीसै घटमें प्रगट सदा, अंतरकी लछिसौं .