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दोहा. भेदज्ञान साबू भयो, समरस निर्मल नीर । धोबी अंतर आतमा; धोवे निजगुण चीर ॥९॥ अव भेदज्ञानकी जो क्रिया (कर्तव्यता ) है सो दृष्टांत
- ते कहे है ॥ सवैया ३६ सा. जैसे रज सोधा रज सोधिके दरव काडे, पावक कनक काढे दाहत उपल को ॥ पंकके गरभमें ज्यो डारिये कुतक फल, नीर करे उज्जल नितोरि डारे मलको ।। दधिके मथैया मथि काढे जैसे माखनको, राजहंस जैसे दूधपीवे त्यागि जलको । तैसे ज्ञानवंत भेदज्ञानकी शकति साधि, वेदे निज संपत्ति उच्छेदेपर दलको ॥.१०॥ . .. अब मोक्षका मूल भेदज्ञान है सो कहे है । छप्पै छंद.
प्रगट भेद विज्ञान, आपगुण परगुण जाने । पर परणति परित्याग, शुद्ध अनुभौ तिथि ठाने । करि अनुभौ अभ्यास, सहज संवर परकासे । आश्रव द्वार विरोधि, कर्मघन तिमिर विनासे । क्षय करि विभाव समभाव भाज, निरविकल्प निन पद. गहे । निर्मल विशुद्ध शाश्वत सुधिर, परम अतींद्रिय सुखलहे ॥ ११ ॥ .
॥ इति छटो संवरद्वार समाप्त भयो ॥ ६ ॥