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( २२) मुधा है । औरसों न कबहू प्रगट आपाआपहीसों, ऐसो थिर चेतन स्वभाव शुद्ध सुधा है ॥ चेतनको अनुभौ आराधे जग तेई जीव, जिन्हके अखंड रस चाखवेकी क्षुधा है ।। ११ ॥ . . . :
अब मूढ स्वभाव वर्णन ॥सवैया २३ सा. चेतन जीव अजीव अचेतन, लक्षण भेद उभे पद न्यारे ।। सम्यकदृष्टि उदात विचक्षण, मिन्न लखे लखिके निरवारे । जे जगमांहि अनादि अखं. डित, मोह महा मदके मतवारे ॥ ते जड चेतन एक कहे, तिनकी फिरि टेक टरे नहिं टारे ॥ १२ ॥
अब ज्ञाताका विलास कथन ॥ सवैया २३ सा. .. ____ या घटमें भ्रमरूप अनादि, विलास महा अविवेक अखारो ॥ तामहि
और सरूप न दीसत, पुद्गल नृत्य करे अति भारो ॥ फेरत भेष दिखावत कौतुक, मोन लिये वरणादि पसारो ॥ मोहसु भिन्न जुदो जड़सों चिन्, मूरति नाटक देखन हारो ॥ १३ ॥ . अब ज्ञान विलास कथन । सवैया ३२ सा. " .
जैसे करवत एक काठ बीच खंड करे, जैसे राजहंस निरवारे दूध जलकों ॥ तैसे मेदज्ञान निज भेदक शकति सेती, भिन्न भिन्न करे चिदानंद पुदगलकों ॥ अवधिकों धावे मनपकी अवस्था पावे, उमगिके
आवे परमावधिके थलकों ॥ याही . मांति पूरण सरूपको उदोत धरे, करे प्रतिबिंबित पदारथ सकलकों ॥ १४॥ . . . . ..... द्वितीय अजीवदार समाप्त हुआ ॥२॥ .. .. . :