SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२०) पंच अणुव्रत आदरे, तीन गुण व्रत पाल। . . शिक्षावत चारों धरे, यह व्रत प्रतिमा चाल ॥ ५९॥ . द्रव्य भाव विधि संयुकत; हिये प्रतिज्ञा टेक। ". तजि ममता समता गहे, अंतर्मुहूरत एक ॥६०।। ...' चौ०-जो आर मित्र समान विचारे । आरत रौद्र कुध्यान निवारे ॥ संयम संहित भावना भावे । सो सामाइकवंत कहावे ॥ ६१ ॥ . . प्रथम सामायिककी दशा, चार पहरलों होय। . . अथवा आठ पहरलों, प्रोसह प्रतिमा सोय ॥ ६२॥ . जो सचित्त भोजन तजे, पीवे प्रासुक नीर। .. सो सचित्त त्यागी पुरुष, पंच प्रतिज्ञा गीर॥६३ ।। चौ०-जो दिन ब्रह्मचर्य व्रत पाले । तिथि आये निशि दिवस संभाले ॥ . गहि नव वाडि करे व्रत रख्या । सो षट् प्रतिमा श्रावक आख्या । ६४॥ जो नव वाडि सहित विधि साधे । निशि दिनि ब्रह्मचर्य आराधे ॥ .. सो सप्तम प्रतिमा धर ज्ञाता । सील शिरोमणी नग़त विख्याता ॥६५॥ तियथल वास प्रेम रांचे निरखन, दे परीछ भाखें मधु वैन ॥ . .: .. पूरव भोग कोलि रस चिंतन । गत आहार लेत चित चैन ॥ . . कार सुचि तन सिंगार बनावत, तिय परजंक मध्य सुख सैन ।' :. . मनमथ कथा उदर भरि भोजन; ये नव वाडि कहे जिन बैन ॥ ६६.॥ जो विवेक विधि: आदरे, करे न पापारंभ । . . . सो अष्टम प्रतिमा धनी, कुगति विजै रणथंभ ॥ ६७ ॥
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy