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सम्यक सत्य अमोघ सत, निःसंदेह निरधार । ठीक यथातथ उचित तथ, मिथ्या आदि अकार॥४९॥ अजथारथ मिथ्या मृपा, वृथा असत्य अलीक। मुधा मोघ निःफल वितथ, अनुचित असत अठीक ॥५०
॥ इति श्रीसमयसारनाटकमध्ये नाममाला सूचनिका संपूर्णा ॥
अथ समयसार नाटक मूलग्रंथ प्रारंभः।
चिदानंद भगवानकी स्तुति ॥ मंगलाचरण ॥ दोहा. शोभित निज अनुभूति युत, चिदानंद भगवान । सार पदारथ आतमा, सकल पदारथ जान ॥१॥ अव आत्माको वर्णन करि सिद्ध भगवानको नमस्कार.
सवैया २३ सा. जो अपनी द्युति आप विराजित, है परधान पदारथ नामी ॥ चेतन अंक सदा निकलंक, महा सुख सागरको विसरामी ॥ जीव अजीव जिते जगमें, तिनको गुण ज्ञायकं अंतरजामी ॥ सो सिवरूप वसे सिवनायक, ताहि विलोकि नमै सिवगामी ॥ २॥ - अव जिनवाणीका वर्णन ॥ सवैया २३ सा. '
जोगधरी रहे जोगसु भिन्न, अनंत गुणातम केवलज्ञानी ॥ तासु हृदै द्रहसो निकसी, सरिता समन्है श्रुत सिंधु समानी ॥ याते अनंत नयातम लक्षण, सत्य सरूप सिद्धांत वखानी ॥ बुद्ध लखे दुरखुद्ध लखेनहि, सदा जगमाहि जगे जिनवाणी ॥ ३ ॥