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क्षपे, द्वै उपशम इक वेद । क्षयोपशम वेदक दशा, तासु प्रथम यह भेद ॥४५॥ पंच क्षपे एक उपशमे, रुक वेद. जिह ठोर । सो क्षयोपशम वेदकी, दशा दुतिय यह .
और ॥ ४६ ॥ क्षय पट् वेदे इक जो, क्षायक वेदक सोय; । षट् उपशम रुकविदे, उपशम वेदक होय ॥४७॥ ।
उपशम क्षायककी दशा, पूरव पटू पदमांहि । ... कहि अब पुन रुक्तिके, कारण वरणी नांहि ॥४८॥ .
क्षयोपशम वेदकहि क्षै, उपशम समकित चार। तीन चार इक इक मिलत, सब नव भेद विचार ॥४९॥ अब निश्चै व्यवहार, सामान्य अर विशेष विधि।.. कहूं चार परकार, रचना समकित भूमिकी ॥ ५० ॥
३१. सा-मिथ्यामति गठि भेदि जगी निरमल ज्योति.। जोगसो अतीत सो तो निहचै प्रमानिये । वहै दुंद दशासों कहावे जोग मुद्रा धारी। मति श्रुति ज्ञान भेद व्यवहार मानिये ॥ चेतना चिन्ह पहिचानि आपा पर वेदे, पौरुष अलप ताते सामान्य वखानिये ॥ करे भेदाभेदको विचार विसताररूप, हेय ज्ञेय उपादेय सो विशेष जानिये ॥ ११ ॥
तिथि सांगर तेतीस, अंतर्मुहूरत एक वा। ... • अविरत समकित रीत, यह चतुर्थ गुणस्थान इति ॥
अब वरतूं इकवीस गुण, अर.बावीस अभक्ष । ... जिन्हके संग्रह त्यांगसों, शोभे श्रावक पक्ष ॥५२॥