SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११२) भयो क्रियासों उदासी वह, मिथ्या मोह निद्रामें सुपनकोसो छल है ॥ २ अमृतचंद्र मुनिराजकृत, पूरण भयो गरंथ । .... समयसार नाटक प्रगट, पंचम गति को पंथ ॥३॥ ॥ इति श्रीअमृतचंद्राचार्यानुसार समयसार नाटक समाप्त ॥. चौपाई-जिन प्रतिमा जन दोष निकंदे । सीस नमाइ वनारसि वैदे। फिरि मन मांहि विचारी ऐसा । नाटक ग्रंथ परम पद जैसा ॥ १ ॥ परम तत्व परिचै इस मांही । गुण स्थानककी रचना नाही ॥ यामें गुण स्थानक रस आवे । तो गरंथ अति शोभा पावे ॥ २ ॥ -- चतुर्दश गुणस्थानाधिकार प्रारंभा। जिन प्रतिमा जिन सारखी, नमै बनारसि ताहि॥ जाके भक्ति प्रभावसो, कीनो ग्रंथ निवाहि ॥ १ ॥ ३१ सा-जाके मुख दरससों भगतके नैन नीकों, थिरताकी बढे चंचलता विनसी-॥ मुद्रा देखें केवलीकी मुद्रा याद आवे जहां, आगे इंद्रकी विभूति दीसे तिनसी.।। जाको जस जपत प्रकाश जगे हिरदेमें, सोइ शुद्ध मति होइ हुति जो मलिनसी ॥ कहत वनारसी सुमहिमा . . जाकी, सो है जिनकी छवि सु विद्यमान जिनसी ॥ २ ॥ __ ३१ सा-जाके. उर अंतर सुदृष्टिकी लहर लसि, विनसी या मोह निद्राकी ममारखी ॥ सौलि जिन शासनकी फैलि जाके घट भयो, . गरवको त्यागि षट दरवको पारखी ॥ आगमके अक्षर परे है जाके
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy